परमेष्वर की प्रतिज्ञाओं के देष में होकर चलना - भाग 5

Teaching Legacy Letter
*First Published: 2016
*Last Updated: दिसंबर 2025
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बुद्धि
शिक्षा की इस श्रृंखला में हम “परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के देश में होकर चलना” विशय पर चर्चा करते आ रहे हैं। मेरा उद्देश्य आपको यह दिखाना रहा है कि हरेक समस्या को हल करने के लिए, जो हमारे जीवनों में उत्पन्न होती है, परमेश्वर के वचन में विशिश्ट प्रतिज्ञाएँ दी गई हैं। हमारे पिछले भागों में मैंने यह कहते हुए इस सिद्धांत को समाप्त किया था कि हमारे लिए परमेश्वर का प्रबंध उसकी प्रतिज्ञाओं में हैं और वे प्रतिज्ञाएँ हमारी विरासत हैं।
मेरे कई वर्षों के शिक्षण में, मैंने अक्सर निम्नलिखित गहन सत्य को इंगित किया है। पुराने नियम में, यहोशू नाम के एक अगुवे के अधीन, परमेश्वर अपने लोगों को एक प्रतिज्ञात देश में ले गया। लेकिन नया नियम में, यीशु नामक एक अगुवे (इब्रानी में यहोशू के समानार्थी नाम) के तहत, परमेश्वर अपने लोगों को एक प्रतिज्ञात देश में ले जाता है। परमेश्वर ने जो विरासत प्रदान किया था उन सब पर दावा करने मे यहोशू और इसाएलियों को काफी समय लगा। इस्राएल द्वारा कई जीत हासिल करने और बहुत अधिक क्षेत्र प्राप्त करने के बाद भी, परमेश्वर ने उनसे कहा, “अधिकार करने के लिए बहुत सारी भूमि बची हुई है।” मसीहियों के रूप में यह भी हमारे लिए भी सच है। यहोशू की तरह, हमने भी केवल एक छोटे से हिस्से में प्रवेश किया है जिसका प्रावधान परमेश्वर ने अपनी प्रतिज्ञाओं में
यदि हम परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की गहराई में जाने वाले हैं तो हमें बुद्धि की आवश्यकता पड़ने वाली है - जो कि डेरेक प्रिंस की शिक्षण विरासत की इस संस्करण का मुख्य विशय है। आईए, हमारे स्वर्गीय यहोशू, रूपी यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा परमेश्वर द्वारा हमारे लिए प्रदत्त इस अद्भुत प्रतिज्ञाओं के देश का विश्लेशण जारी रखें। बुद्धि जो कार्य करती है
प्रभावी बुद्धि” या
हमारी श्रृंखला के इस भाग में हम परमेश्वर की प्रतिज्ञाओ पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो विशिश्ट रूप से बुद्धि से संबंधित होती है। इससे पहले कि हम प्रारंभ करें मुझे यह भी बताने दें कि बाइबल में प्रकट की गई सारी बुद्धि हमेशा व्यावहारिक है। मैं बहुत वर्शों तक प्रभ के साथ चला हूँ, इस दौरान मैंने पाया है कि वह बहुत ही व्यावहारिक परमेश्वर है। वास्तव में, मैं विश्वास करता हूँ कि कोई भी बात जो सच में आत्मिक है वह अत्यधिक व्यावहारिक भी होती है।
कभी कभी हम ऐसे लोगों के बारे में बात करते हैं जो “बहुत ही स्वर्गीय मन के होते हैं कि वे “पृथ्वी पर किसी काम के नहीं हैं।” हालाँकि ऐसे लोग सच में आत्मिक नहीं होते हैं। ऐसे लोग जो पवित्रात्मा के द्वारा चलाए चलते हैं वे बहुत ही व्यावहारिक लोग होते हैं। इस सिद्धांत को ध्यान में
पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से माँगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी। पर विश्वास से माँगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा। वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है।
इस पद में परमेश्वर ने बहुत ही स्पश्ट रूप प्रतिज्ञा किया है कि वह हम में से किसी को भी किसी भी स्थिति में जब भी जरूरत हो, बुद्धि दे सकता है। हमें केवल इतना करना है कि परमेश्वर से माँगें, “जो बिना दोश लगाए सबको उदारता पूर्वक देता है।”
इस पद में परमेश्वर ने बहुत ही स्पश्ट रूप प्रतिज्ञा किया है कि वह हम में से किसी को भी किसी भी स्थिति में जब भी जरूरत हो, बुद्धि दे सकता है। हमें केवल इतना करना है कि परमेश्वर से माँगें, “जो बिना दोश लगाए सबको उदारता पूर्वक देता है।” क्या यह एक अद्भुत प्रतिज्ञा नहीं है? परमेश्वर उन सबको उदारतापूर्वक बुद्धि देगा जिन्हें उसकी जरूरत है। इससे भी अधिक, बुद्धि की कमी होने के कारण और उसे माँगने की जरूरत पड़ने के कारण परमेश्वर हमें गलत नहीं ठहराता है। वह जानता है कि हममें बुद्धि की कमी है, और वह हमें वह सबकुछ देना चाहता है जिनकी हममें कमी है। याकूब में प्रतिज्ञा हैः “वह तुम्हें दिया जाएगा।”
ऐसे निश्चय के साथ हमें कभी भी परमेश्वर से बुद्धि माँगने से रुकना नहीं करना चाहिए। हालाँकि हमें जिस बुद्धि की आवश्यकता है उसके न होने का एक मुख्य कारण उसकी जरूरत को स्वीकार नहीं करना है। हम स्वीकार नहीं करते हैं कि हममें बुद्धि की कमी है। हम स्वयं में और स्वयं की समझ में भरोसा करने को प्राथमिकता देते हैं जो प्रायः समस्याओं की ओर ले जाती है। अन्य समयों में, हम बुद्धि की अपनी कमी को पहचान लेते हैं लेकिन हमें ऐसा नहीं लगता है कि हमें परमेश्वर से इसे माँगना चाहिए । कोई संदेह नहीं
कोई संदेह नहीं
तीसरा कारण कि हममें बुद्धि की कमी क्यों है, यह विश्वास में इसे माँगते नहीं हैं। परमेश्वर हमसे दबाव पूर्वक माँग करता है कि जब हम उससे किसी बात की माँग करते हैं तो हमें विश्वास करने की आवश्यकता है कि जो कुछ हम माँगते हैं वह हमें देगा। इसीलिए उपरोक्त भाग में याकूब
“....और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।”
आप प्रभु से जो कुछ भी प्राप्त करने आ रहे हैं, परमेश्वर अपेक्षा करता है कि आप उसमें विश्वास करें और आप भरोसा करें कि वह आपको प्रतिफल देगा। इस उदाहरण में विशेशकर बुद्धि प्राप्त करने की बात पर यह भार्त लागू की जाती है।
जब हम परमेश्वर से बुद्धि पाना चाहते हैं, हमें आपने हृदय और मन को विश्वास करने के लिए निर्धारित करना पड़ता है। क्या विश्वास करना है? यह कि यदि हम दीन होकर विश्वास में माँगते हैं, तो जो हम माँगते हैं, वह परमेश्वर हमें देगा। परमेश्वर सच में इंतजार कर रहा है कि हम अपनी जरूरत को देखें और उसके प्रावधान को माँगें। वह देने के लिए इंतजार कर रहा है। क्या आप यह विश्वास करते हैं?
मसीह में छिपा हुआ
बुद्धि यीशु मसीह में हमारी कुल विरासत का एक बहुत बड़ा भाग है। लेकिन हम इसे कहाँ पा सकते हैं? 1 कुरिन्थियों 1:30 पौलुस हमें एक संकेत देते हैंः
परन्तु उसी की ओर से (अर्थात् परमेश्वर के कार्य के द्वारा) तुम मसीह यीशु में हो, (इसलिए आप देखते हैं कि हमारी संपूर्ण विरासत मसीह यीशु में हैं) जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान ठहरा अर्थात् धर्म, और पवित्रता, और छुटकारा...
इस भाग के अनुसार यीशु हमारी बुद्धि है। हमारी सारी बुद्धि उसमें है। (वह हमारी धार्मिकता, हमारी पवित्रता और हमारा छुटकारा है।)
एक और वचन जो इस सिद्धांत का समर्थन करता है, वह कुलुस्सियों 2:2-3 में, कुलुस्से और अन्य स्थानों के मसीहियों के संबंध में पाया जाता हैः
ताकि उन के मनों में शान्ति हो और वे प्रेम से आपस में गठे रहें, और वे पूरी समझ का सारा ध् ान प्राप्त करें, और परमेश्वर पिता के भेद को अर्थात् मसीह को पहिचान लें। जिस में बुद्धि और ज्ञान से सारे भण्डार छिपे हुए हैं।
बुद्धि कहाँ है ? यह पद हमें बताता है। बुद्धि और ज्ञान के सारे भंडार यीशु मसीह में छिपे हुए हैं।
बुद्धि कहाँ है ? यह पद हमें बताता है। बुद्धि और ज्ञान के सारे भंडार यीशु मसीह में छिपे हुए हैं। यीशु को जानने से पहले मैं कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दर्शन भाास्त्र का एक व्याख्याता था। मैं लगातार बुद्धि की खोज में था; परंतु सच्चाई यह थी कि मैं मानवीय बुद्धि के कूड़ाकरकट में जी रहा था। जब मैंने यीशु को जाना तो मैं यह देखकर आनंदित हुआ कि बुद्धि और ज्ञान का सारा खजाना उसमें है। मैं उस कूड़ाकरकट से वापस फिर गया और निश्चय किया कि मैं उस बुद्धि की खाज करूँगा जो यीशु में है। क्या आप जानते हैं कि मैंने क्या पाया ? यीशु में बुद्धि और ज्ञान का सारा खजाना पाया जाता है।
लय में हृदय
बुद्धि के विशय में अधिक सीखने के लिए इसके विपरात देखना भी सहायक हैः मूर्खता। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि मूर्खता बुद्धि की कमी मात्र नहीं है। मूर्खता की एक नैतिक विशेशता है; यह एक हृदय को सूचित करता है जो परमेश्वर के साथ एकरूप नहीं है। मरकुस 7:21-22 यीशु बुरी बातों की एक सूची देते हैं जो नए रूप से न जन्मे मानवीय हृदय से आता है। वह कहता है: “क्योंकि भीतर से अर्थात् मनुष्य मे मन से, बुरी बुरी चिन्ता व्यभिचार। चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं।”
“क्योंकि भीतर से अर्थात् मनुष्य मे मन से, बुरी बुरी चिन्ता व्यभिचार। चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं।”
बहुत ही रोचक है कि बोलचाल की अरबी भाशा में “बुद्धि मान” के लिए “आलसी” भाब्द का प्रयोग होता है। दूसरे भाब्दों में मूर्खता केवल बुद्धि की कमी मात्र नहीं है। यह चरित्र की कमी भी है।
आत्मा की भूमिका
पहले हमने इस प्रश्न का उत्तर दिया था कि “बुद्धि कहाँ हैं ?” हमने देखा कि यीशु मसीह स्वयं बुद्धि है जो हमें परमेश्वर द्वारा दिया गया है और बुद्धि और ज्ञान का सारा खजाना उसमें पाया जाता है। लेकिन हम इन खजानों तक कैसे पहुँच सकते हैं ? जो कुछ हम माँगते हैं उसे परमेश्वर कैसे देता है?
मैं मानता हूँ कि इन प्रश्नों का एक मूल उत्तर यूहन्ना 16:13-15 में पाया जाता है। अपने शिश्यों से बात करते हुए यीशु कहते हैं:
“परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा। वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा। जो कुछ पिता का है, वह सब मेरा है; इसलिये मैं ने कहा, कि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा। थोड़ी देर तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे।”
अभी तक हमने जो कुछ अध्ययन किया है उससे यह स्पष्ट है कि बुद्धि और ज्ञान का खजाना मसीह में हैं। लेकिन वह जो हमारे लिए इन खजानों को उपलब्ध कराता है वह जो उन्हें आकर्षित करता है और उन्हें हमारे सामने प्रकट करता है वह पवित्र आत्मा है। पवित्र आत्मा परमेश्वर के - राज्य के सभी धन का प्रशासक है - जिसमें मसीह में बुद्धि और ज्ञान की संपत्ति शामिल है।
इसलिए, बुद्धि प्राप्त करने के लिए जिसे परमेश्वर ने हमें देने का वायदा किया है, हमें अवश्य ही पवित्र आत्मा के साथ एक सतत, घनिष्ठ संबंध विकसित करना चाहिए। पवित्र आत्मा ही है जो बुद्धि और ज्ञान के इन खजानों को हमारे लिए उपलब्ध कराता है। हमें परमेश्वर के आत्मा के साथ सद्भाव और संगति में चलना है। हमें सुनना है कि आत्मा क्या कह रहा है। हमें उसके सौम्य आघातों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। हमें उन चेतावनियों पर ध्यान देना होगा कि जो वह हमें देता है।
कई बार हम परेशानी में पड़ जाते हैं क्योंकि हम उस लाल बत्ती को पार कर जाते हैं जो पवित्र आत्मा हमारे रास्ते में रखता है। जब हम उसकी चेतावनियों को अनदेखा करते हैं, तो हम अनिवार्य रूप से किसी प्रकार की दुर्घटना या समस्या में जा पड़ते हैं। ऐसे दुर्भाग्य इसलिए नहीं होते क्योंकि हमारे लिए बुद्धि उपलब्ध नहीं था। इसके बजाय वे इसलिए होते हैं क्योंकि हमने पवित्र आत्मा पर ध्यान नहीं दिया।
परिपक्वता की ओर
रोमियों 8:14 में पौलुस कहता हैः
इसलिए कि जितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं।
"पुत्रों” के लिए प्रयुक्त यूनानी शब्द परिपक्वता को इंगित करता है। परिपक्व विश्वासी का चिन्ह निरंतर पवित्र आत्मा द्वारा नेतृत्व किया जाना है। वह परिपक्वता हमें हर छोटी सी बात, अगुवाई के हर शब्द, और पवित्र आत्मा के हर फुसफुसाहट के प्रति संवेदनशील बनाती है। यदि हम इस तरह से काम करते हैं, तो हमारे लिए बुद्धि लगातार उपलब्ध कराया जाता है।
मैं बुद्धि प्राप्त करने के तरीके पर मार्गदर्शन के एक और व्यावहारिक शब्द की पेशकश करना चाहता हूँ। बुद्धि के बारे में परमेश्वर के लिखित प्रावधान पर अपना मन
इनके द्वारा पढ़नेवाला बुद्धि और शिक्षा प्राप्त करे, और समझ की बातें समझे, और काम करने में प्रवीणता, और धर्म, न्याय और सीधाई की शिक्षा पाए; कि भोलों को चतुराई, और जवान को ज्ञान और विवेक मिले।
नीतिवचन की पुस्तक में 31 अध्याय हैं। क्यों न प्रतिदिन एक अध्याय पढ़ा जाए, और वर्श के हर महीने ऐसा किया जाए? मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूँ कि उस समय के अंत में, आप वर्ष की शुरुआत की तुलना में बहुत बुद्धिमान होंगे।
आपके विशय क्या?
शायद आप वर्तमान में परमेश्वर की बुद्धि की खोज कर रहे हैं - और आप जानते हैं कि आपको इसकी कितनी जरूरत है। या, जैसा कि आपने इस शिक्षण पत्र को पढ़ा है, आप पवित्र आत्मा के साथ गहरे, अधिक घनिष्ठ संबंध के लिए उत्सुकता महसूस करते हैं - वह जो हमारे लिए बुद्धि के खजाने को उपलब्ध कराता है। आइए अब निम्नलिखित प्रार्थना के माध्यम से परमेश्वर की उस इच्छा को व्यक्त करेंः
*Prayer Response
हे पिता, जिस बुद्धि के बारे में अभी पढ़ा है, उसे ढूँढ़ते और माँगते हुए, मैं अब आपके पास आता हूँ। मैं अपने विश्वास की घोशणा करता हूँ कि "आप और कि आप उन लोगों को पुरस्कृत .. करते हैं जो आपको यत्नपूर्वक खोजते हैं।” मैं अब माँगता हूँ कि आप अपने भीतर छिपे हुए बुद्धि का खजाना प्रदान करें। मैं नै आपको अब तक जितनी गहराई से जाना है, उससे अधिक अंतरंग चाल के लिए बिनती करता हूँ। मेरे प्रति आपकी दयालुता और विश्वास के लिए धन्यवाद। आप जानते हैं कि मुझे क्या कमी है और मुझे क्या चाहिए।
पवित्र आत्मा की शक्ति के माध्यम से आपकी कुद्धि को मेरे लिए उपलब्ध कराने के लिए, हे परमेश्वर धन्यवाद। आमीन।
कोड: TL-L112-100-HIN