परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की भूमि में होकर चलना

Teaching Legacy Letter
*First Published: 2016
*Last Updated: दिसंबर 2025
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मानसिक शांति
हमारी वर्तमान श्रृंखला “परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के देष में होकर चलना” में हमारा ध्यान उन समस्याओं को बाइबल के आधार पर सुलझाने में रहा है जो आमतौर पर हमारे जीवनों में उत्पन्न होते हैं। इन शिक्षाओं के दौरान, मैंने आपको प्रत्येक विशेष स्थिति के लिए परमेष्वर के वचन से उपयुक्त विशिष्ट वायदों का पता लगाने और दावा करने के द्वारा जीवन के मुद्दों को संभालने के लिए एक व्यावहारिक तरीका दिखाने का प्रयास किया है। यह किस्त हमारे युग के सबसे आम विपत्तियों में से एक मानसिक पीड़ा की समस्या पर बात करता है। इस पत्र में, मैं यह दिखाने की आषा करता हूँ कि आप कैसे मन की शांति का आनंद प्राप्त कर सकते हैं।
मुक्ति की आवष्यकता
प्रारंभ से ही हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारी समकालीन संस्कृति में हम पर कई अलग—अलग प्रकार के दबाव होते है, जो लगातार वृद्धि करते हुए लगते हैं। यहाँ कुछ उदाहरण हैं। द
दबाव का एक सामान्य रूप सहकर्मी का दबाव है – जो कि हमारे - बाकी समूह के अनुरूप होने और समान होने का दबाव है, चाहे यह एक आयु समूह या एक सामाजिक समूह हो। उदाहरण के लिए, विद्यालय में बच्चे ऐसा करने के लिए दबाव महसूस करते हैं जैसे अन्य सभी बच्चे कर रहे हैं। केवल इसलिए कसम खाना क्योंकि हर कोई कर रहा है, धूम्रपान और नषा करना और दूसरे तरीकों से मेल जोल रखने की कोषिष करना।
जब हम जीवन में बड़े होते जाते हैं तो इसी तरह का दबाव जारी रहता है। वयस्क समाज में, इसे “जैसा देष वैसा भेश” के रूप में जाना जाता है। वयस्कों के बीच लगभग निरंतर दबाव होता है, कि दूसरों के समान बनें जो कि आमतौर पर हमारी अपनी आंतरिक प्रकृति और सच्चे
एक अन्य प्रकार का दबाव आर्थिक दबाव होता है – हमारी भौतिक इच्छाओं को पूरा करने और हमारे बुढ़ापे के लिए सुरक्षा प्रदान करने हेतु बचत करने के लिए पर्याप्त धन कमाते हैं। अधिक धन प्राप्त करने के लिए लगातार दबाव प्रतीत होता है। वास्तव में, ऐसा लगता है कि लोग कितना भी धन कमा लें, यह कभी भी पर्याप्त नहीं होता है।
जीवन और स्वास्थ्य के लिए संघर्श
कुछ और बुनियादी दबाव भी हैं, जैसे कि बचे रहने के लिए दबाव। हम में से हरेक रोग और बिमारी के खिलाफ निरंतर लड़ाई का सामना करते हैं। बहुत से लोगों को कुछ ऐसी स्थिति में पाया गया है जो संभवतः घातक साबित हो सकता है, अनिवार्य रूप से उन पर मौत की तलवार के लटके होने का दबाव बनाना। यह दबाव के सबसे भारी रूपों में से एक है जिसका समना एक व्यक्ति कर सकता है।
इन मामलों में, अक्सर आंतरिक आवाज होती है जो धमकी देने, आरोप लगानें, या पीड़ा देने वाले विचारों के एक स्थिर प्रवाह को बनाए रखता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि जहाँ कहीं भी आवाज है, वहा उसके पीछे एक व्यक्ति होता है। एक आवाज की उपस्थिति एक व्यक्ति की उपस्थिति को इंगित करता है।
अगर वह आवाज़ हमें पीड़ा देते या दोश लगाते हैं जिसे हम सुनते हैं, तो हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आवाज के पीछे का व्यक्ति शैतान है। ध्यान रखें कि शैतान को दोश लगाने वाला कहा जाता है। जब आपके मन में आरोप लगाने वाली आवाज होती हैं, जो आपको आंदोलित करती और उकसाती है आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि शैतान आपके जीवन में काम कर रहा है।
सामान्य आक्रमण
लोगों के मनों के खिलाफ विरोधी कई तरह के आरोप लगाता हैं। एक आम आरोप है: परमेश्वर आपसे प्यार नहीं करता है: यह विश्वास करने का अंतिम परिणाम तिरस्कृत और अकेला महसूस करना है। आप ऐसा महसूस करने लगते हैं कि आपके जीवन को छोड़कर हर किसी के जीवन के लिए परमेश्वर की एक योजना है। एक और आरोप है: आप हमेशा असफल ही रहेंगे। कभी-कभी ये शब्द हमारे पास के लोगों द्वारा प्रतिध्वनित होते हैं- शायद माता-पिता या पति या पत्नी। उनका संदेश स्पष्ट और स्थिर होता हैः “तुम इतने बार विफल हुए हो, कि विफलता को छोड़कर जीवन में तुम्हारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है।”
परेशान करने वाली एक और सोच है: अपने मन पर से आपका नियंत्रण छूट रहा है। परामर्श सत्र में, मुझे आश्चर्य हुआ है कि कितने लोगों ने उनसे इन शब्दों को कहते हुए सुना है – उन्हें याद दिलाते हुए कि चूँकि परिवार में यह दूसरों के साथ यह हुआ है, अतः अगला वे ही होंगे। यह यातना का एक पीड़ादायक रूप है।
इसके साथ शारीरिक दर्द और रोग के लक्षणों से जुड़े हमलें भी होते हैं। एक व्यक्तिऐसे विचारों से परेशान हो सकता है कि एक निश्चित दर्द कैंसर के कारण हो रहा है, हालाँकि कोई बिमारी विद्यमान नहीं है। काफी संभव है कि आपके साथ बहुत कम परेषानी है। हालाँकि, आप बहुत अधि एक हिल गए हैं और आने वाले दर्द से भयभीत हैं और इन सचेत विचारों को चुनौती देते हैं।
मैं किस बात से भयभीत हुआ
अय्यूब बाइबल का एक चरित्र था जो इसी प्रकार की मानसिक पीड़ा से गुजरा जिस प्रकार की हम विचार कर रहे हैं। उन्होंने इस प्रक्रिया को बहुत स्पष्ट और संक्षेप में अभिव्यक्त किया।
क्योंकि जिस डरावनी बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आ पड़ती है, और जिस बात से मैं भय खाता हूँ वही मुझ पर आ जाती है। मुझे न तो चैन, न शान्ति, न विश्राम मिलता है; परन्तु दुख ही आता है। (अय्यूब ३:२५-२६)।
जो अय्यूब ने कहा वह हमारे समकालीन सभ्यता में अनगिनत हजारों बार सच है “जिस डरावनी बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आ पड़ती है। डर आप के लिए उसी स्थिति के लिए दरवाजा खोल सकता है जिससे आप डर रहे हैं। कुछ लोगों में कैंसर के संभावित कारणों में से एक बस स्वयं को कैंसर होने का रोगी होने का भय है। इसी तरह, लोगों में पागलपन का एक महत्वपूर्ण कारक पागल होने का उनका अपना डर होता है। शैतान हम पर अतिरिक्त कठिनाइयों को लाने के लिए एक लीवर के रूप में भय का उपयोग करता है: “क्योंकि जिस डरावनी बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आ पड़ती है, और जिस बात से मैं भय खाता हूँ वही मुझ पर आ जाती है। मुझे न तो चैन, न शान्ति, न विश्राम मिलता है; परन्तु दुख ही आता है।”
क्या यही आपकी स्थिति है? क्या यह आपका वर्णन करता है? यदि हाँ, तो मैं चाहता हूँ कि आप जान लें कि इसका उपाय है। यह तब आता है जब हम उस द्वार को पहचानते हैं जिसका उपयोग हमारे जीवनों में आने के लिए शैतान करता है।
करने जा रहा हूँ। पहला असंतोष और अक्षमा है। किसी के प्रति असंतुष्टि और अक्षमा महसूस करना आम बात है, आमतौर पर अपने किसी निकटतम व्यक्ति के प्रतिः आमतौर पर माता–पिता, पति, बच्चा, पड़ोसी या कलीसिया में से कोई। दूसरा दरवाजा परमेश्वर के प्रति विद्रोह का दृष्टिकोण है। हमारा विद्रोह समाज या मानव अधिकार के प्रति हो सकता है। लेकिन संक्षेप में, यह परमेश्वर के प्रति विद्रोह है – परमेश्वर के धार्मिक शासन के अधीन होने से इनकार।
द्वार बंद करना
यह समझने के बाद कि कौन सा दरवाजा खुला है, दरवाजा बंद करने के द्वारा उपाय शुरू होता है। यदि द्वार असंतोष और अक्षमा है, तो हमें उस व्यक्ति को क्षमा करना होगा जिससे हम असंतुश्ट हैं। हमें अपनी कड़वाहट और नफरत को त्याग देना है। प्रभु की प्रार्थना में, यीशु ने कहाः
और जिस प्रकार हम ने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर। (मती ६:१२)
हमें परमेष्वर से एक हद के बाहर हमें क्षमा करने के लिए कहने का कोई अधिकार नहीं है जितना हम दूसरों को क्षमा करते हैं। परमेश्वर हमें उस हद तक क्षमा करेंगे जिस हद तक हम दूसरों को क्षमा करते हैं। यीशु ने कहा:,
इसलिए यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा।”
यदि हम परमेश्वर से क्षमा चाहते हैं, तो हमें दूसरों को क्षमा करना होगा परमेश्वर ने उस षर्त को निर्धारित किया है, और वह इसे नहीं बदलेगा। याद रखें, क्षमा एक भावना नहीं है यह एक निर्णय है। एक मायने में, यह उस आई ओ यू को फाड देना है जिसके कारण आप पर किसी का अधिकार है। पहला दरवाजा बंद करने का तरीका अन्य लोगों को क्षमा करना है।
यदि आपकी समस्या विद्रोह है, और विशेष रूप से परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह है तो उस द्वार को बंद करने का तरीका परमेश्वर के अधीन होना है। फिर से, यह आपकी इच्छा का निर्णय है। हम यह इस बात से देखते हैं जो अध्याय ४, पद ७ याकूब कहता है। “इसलिए परमेश्वर के आधीन हो जाओ; और शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा।” (याकूब ४:७)।
“इसलिए परमेश्वर के आधीन हो जाओ; और शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा।” (याकूब ४:७)।
जब तक आप परमेश्वर का विरोध कर रहे हैं तब तक आप शैतान का विरोध नहीं कर सकते हैं – क्योंकि केवल परमेश्वर ही है जो आपको विश्वास, शक्ति और अनुग्रह दे सकता है जो आपको शैतान का विरोध करने के लिए आवश्यक है। तो, यदि शैतान आपको पीड़ा दे रहा है, तो परमेष्वर के अधीन हों। यह कहकर परमेष्वर के प्रति अपने विद्रोह को छोड़ दें, हे परमेश्वर, मैं आपके समाने समर्पित होता हूँ। आप मेरे सृश्टिकर्ता है।, आप ब्रह्मांड को नियत्रित करते हैं और मैं अपने जीवन में अपने व्यवहार के लिऐ प्रस्तुत होता हूँ। जो कुछ भी आप मुझसे चाहते हैं वह सब में करूँगा।” उस वक्त, आप को आत्मा की तलवार, लेने जो कि ईश्वर का वचन है, और शैतान को अपने जीवन से बाहर निकालने का अधिकार है जैसे यीशु ने किया जब जंगल में प्रलोभन देने के लिए शैतान उसके
यीशु को परमेश्वर को सौंप दिया गया था; इसलिए, वह शैतान का विरोध कर सकता था। यदि आप उस तरह परमेश्वर के प्रति समर्पित हो सकते हैं जिस प्रकार यीशु हुआ तो आपको भी शैतान का विरोध करने का अधिकार है। आपको उन आवाजों को कहने का अधिकार है, “मैं अब और नहीं तुम्हारी नहीं सुनूँगा। शैतान, मेरे जीवन से बाहर निकल जाओ! मैं परमेष्वर के प्रति समर्पित हो रहा हूँ। मैं परमेश्वर का हूँ। मुझ पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है! मेरे खिलाफ सभी दावों को क्रूस पर यीशु की मौत के द्वारा पूरा कर दिया गया था। अब मैं तुम्हारा विरोध करता हूँ और मेरे पास से चले जाने की आज्ञा देता हूँ।”
परमेश्वर के साथ मेल
अब तक, हमने मानसिक पीड़ा से मुक्त होने की हमारी आवश्यकता पर विचार किया है। लेकिन उस मुक्ति का अंतिम परिणाम क्या है? इसका जवाब है: मन की सच्ची शांति।
मानसिक पीड़ा से हमारी मुक्ति के बाद, हमें यह सीखने की जरूरत है कि मन की शांति कैसे प्राप्त करें। ये दोनों एक सिक्के के विपरीत पहलू हैं – एक तरफ, मानसिक पीड़ा, नकारात्मक है। दूसरी ओर, मन की शांति का आनंद लेना, सकारात्मक है।
हमें जिस पहली और सबसे महत्वपूर्ण मन की शांति की आवश्यकता है, वह यह जानना है कि हमारे पास परमेश्वर के साथ मेल है। जब तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ सही रिश्ता न हो तब तक कोई वास्तविक, स्थायी शांति नहीं हो सकती है। यशायाह में धर्मशास्त्र कहता है, “दुष्टों के लिए कोई शांति नहीं है।” उन लोगों के लिए कोई शांति नहीं है जो परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं या जिनकी जिंदगी परमेश्वर के षर्तों के अधीन नहीं होती है। इसलिए, हमें पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि हम परमेष्वर के साथ मेल-मिलाप कर चुके हैं। रोमियों में पौलुस ने कहाः “सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें।” (रोमियों ५:१)
“सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें।” (रोमियों ५:१)
श्रोमियों ५ अध्याय पद ११ में, पौलुस ने कहा, यीशु के माध्यम से “हमारा मेल हुआ है।” मेल शब्द परमेश्वर के साथ संबंध सही करने की हमारी आवष्यकता की ओर संकेत करती है। अपने सांसारिक स्वभाव और पापी जीवन के द्वारा, हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ युद्धरत हैं। हमें उस मेल को स्वीकार करने की आवश्यकता है जो परमेश्वर हमें यीशु के माध्यम से देता है। हमारे उद्धारकर्ता ने अपनी मृत्यु के द्वारा हमारे पापों के लिए पूर्ण और अंतिम दंड का भुगतान किया ताकि हम परमेष्वर से मेल
मेल करने और परमेश्वर की क्षमा की प्रतिज्ञा को पाने के बाद पौलुस कहते हैं, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरे। परिणामस्वरूप, अब हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ हमारा मेल हुआ है। “धर्मी शांति है। “धर्मी ठहरा” शब्द एक महत्वपूर्ण शब्द है। इसका अर्थ हो सकता है: निर्दोष बनाया जाना, अब दोषी नहीं माना जाना या धर्मी बना दिया जाना। जब हम यीषु में और अपने बदले में उसकी मृत्यु पर विश्वास करते हैं, तो हमारे विष्वास के आधार पर उसकी धार्मिकता हममें रोपित की जाती है। यदि आपको यह विश्वास करना कठिन लगता है, तो निम्न वक्तव्यों को बार-बार कहें।
“यीशु की मृत्यु के द्वारा, मैं धर्मी ठहराया गया हूँ, मानो मैं ने कभी पाप नहीं किया हूँ। परमेश्वर के साथ मेरा मेल हो गया है। परमेश्वर के पास मेरे विरुद्ध कुछ भी नहीं है। मैं दोशमुक्त कर दिया गया हूँ।”
यह सत्य मानसिक शांति के लिए बड़ा आधार है। एक बार जब हम ऐसा कर लेते हैं तो हम परमेष्वर को अपनी ओर पाते हैं - और यह जीवन में सबकुछ बदल देता है।
परमेश्वर हमारी ओर है
रोमियों ८:३१-३२ में पौलुस इस निष्चयता को अभिव्यक्त करता है।
“सो हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? जिस ने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दियाः वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्योंकर न देगा?”,
पद ३१ एक बहुत अच्छा प्रश्न पूछता है। यदि परमेश्वर हमारी ओर है तो हमारे खिलाफ कौन हो सकता है? किसी ने इस तरह से इसे व्यक्त कियाः एक धन परमेश्वर किसी भी स्थिति में बहुमत होता है।
अपना सबसे मूल्यवान खजाना, अपने एकमात्र पुत्र यीशु को देने के लिए तैयार था –, तो हम जानते हैं कि इस तरह के प्यार को जान जाते हैं जो हमसे कुछ भी नहीं रख छोड़ेगा। यदि परमेश्वर ने यीशु को दे दिया है, तो ऐसी कोई भलाई नहीं है जो वह हमें कभी न देगा। परमेश्वर हमारी ओर है। वह हमारी ओर है। स्वर्ग के संसाधन हमारे लिए हैं। यह मानसिक शांति का सही आधार है।
एक बार जब हम विश्वास से समझ जाते हैं कि परमेष्वर के साथ हमारा मेल हुआ है – कि हम धर्मी ठहरे (मानो मैंने कभी पाप नहीं किया) तब हम अपनी मानसिक शांति के लिए परमेष्वर का पूरा प्रावधान प्राप्त करने के
फिलिप्पियों में पौलुस स्पष्ट रूप से इस प्रावधान का वर्णन करता हैः
“किसी भी बात की चिन्ता मत करोः परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिल्कुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।" (फिलिप्पियों ४:६-७)।
इस खूबसूरत वाक्यांश पर ध्यान दें, में रखते हुए, “परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिल्कुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” अपने मन को खाली और असुरक्षित छोड़ने से संभव है कि बुरे प्रभाव या दबाव में आ जाए। इसलिए, आपको इसे परमेष्वर की षांति से भरना होगा – और वह शांति आपके मन की रक्षा करेगी। सुरक्षा के लिए वास्तविक यूनानी शब्द का अर्थ है “अपने मन को घेर लेना।' आपको अवष्य ही अपने मन की रक्षा करना चाहिए- यह बुराई के दबावों या यातना देने वाले प्रभावों से जो उसमें प्रवेष करने की ताक में रहते हैं। आइए अब हमारे मनों की रक्षा के लिए कुछ विशिष्ट कदमों पर चर्चा करें।
चार विशिष्ट कदम
हम इस अद्भुत वायदे को दृढ़ करते हैं कि “परमेश्वर की शांति तुम्हारे हृदय और मन को मसीह यीशु में रखेगी।' हालाँकि, इस वायदे पर दावा करने के लिए हमें इससे जुड़ी शर्तों को पूरा करना होगा। हमें अवष्य ही इससे जुड़ी षर्तों को पूरा करना होगा। पहली षर्तः चिंता त्यागें। 'किसी बात की चिंता मत करो।" हर बार चिंता आपके दिमाग पर आक्रमण करने लगती है, तो उसे मना करो। यह कहिए, “मैं धर्मी ठहराया गया हूँ, माने मैं ने कभी पाप नहीं किया है। परमेश्वर के पास मेरे विरुद्ध कुछ नहीं है। परमेश्वर के साथ मेरा मेल है। परमेश्वर मेरे पक्ष में है। परमेश्वर के सभी संसाधन मेरे लिए उपलब्ध हैं। मैं चिंतित होने से इन्कार करता हूँ। जब मैं ऐसा विश्वास करता हूँ तो यह समझदारी या तार्किक नहीं लगता है।"
दूसरी शर्तः हर बात के बारे में प्रार्थना करें। शयद हम पुराने भजन से परिचित हैं जो इस प्रकार है:
आह हम राहत अकसर खोते
नाहक गम उठाते हैं
यही बाईस हैं यकीनन
बाप के पास न जाते हैं
कई बार, हमारे पास मानसिक शांति केवल इसलिए नहीं होती है क्योंकि हम प्रार्थना नहीं करते हैं। एक समस्या उत्पन्न होती है और हम इसे अपने आप ही संभालने का प्रयास करते हैं। हम परमेष्वर की बुद्धि और उसके संसाधनों के लिए परमेष्वर की ओर मुड़े बिना उसे हल करने की कोशिश करते हैं, जो प्रार्थना करते ही हमारे लिए उपलब्ध रहते हैं।
तीसरी षर्तः हमेशा धन्यवादी रहें। यह बिल्कुल जरूरी है। प्रार्थना करना अच्छा है; एक धन्यवादी हृदय आमतौर पर एक शांतिपूर्ण हृदय होता है। लेकिन एक कृतघ्न व्यक्ति सच्चा और स्थायी शांति नहीं जान सकता है। कृतघ्नता परमेष्वर की पूरी प्रकृति के विपरीत है।
चौथी षर्तः सही चीजों के बारे में सोचें। फिलिप्पियों ४ के पद ८ में, पौलुस उन सही चीजों की सूची देते हैं। पहले वह कहते हैं, “जो भी सच है।" ध्यान रखें कि कुछ सच हो सकता है, लेकिन हमें इसके बारे में नहीं सोचना चाहिए। उदाहरण के लिए, हमें लोगों की गलतियों और असफलताओं के बारे में नहीं सोचना चाहिए, भले ही वे सच हों। पौलुस सूची में जोड़ता है कि हमें इसके बारे में क्या सोचना चाहिए। “जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरनीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, पौलुस कहता है कि "उन्हीं पर ध्यान लगया करो।” जो कुछ चुनाव आप करते हैं उस पर ध्यान केंद्रित करने की शक्ति आपके पास है। आप इसे नकारात्मक विषयों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं या आप उस पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जो आपको बनाता है। यदि आप सकारात्मक और उन्नति करनेवाली बात की तलाश करते हैं, तो पवित्र आत्मा आपको इसे ढूँढने में सहायता करेगा।
मन की षांति के लिए प्रार्थना करना
यदि आप मानसिक पीड़ा को दूर करने और मन की शांति का आनंद लेने के लिए व्यावहारिक कदम उठाने की इच्छा रखते हैं, तो आप निम्नलिखित प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर को इस बात से अवगत करा सकते हैं:
*Prayer Response
हे परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैं मानसिक पीड़ा से आगे बढ़ सकता हूँ जिससे मैं मन की सच्ची शांति पाने लिए संघर्ष करता आ रहा हूँ। मैं अब षत्रु की आवाज की आवाज को डाँटने और विरोध करने के लिए कदम उठा रहा हूँ।हे परमेष्वर, मैं घोषणा करता हूँ कि आप मेरी ओर हैं! मैं चिंता छोड़ दूंगा; जब मुद्दे उठते हैं तो मैं पहले प्रार्थना करूंगा; जो कुछ आपने मेरेलिए किया है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद दूंगा; और मैं अपने विचारों को उन सब पर केंद्रित करूँगा जो अच्छा, सच्चा और शुद्ध है।
मानसिक पीड़ा से बचने और मन की शांति पाने हेतु मेरे लिए अपने वचन से कदम उठाने के लिए धन्यवाद, परमेष्वर।आज मैं उस शांति का चुनाव करता हूँ, और मैं विश्वास से इसमें कदम रखता हूँ। आमीन्।
कोड: TL-L111-100-HIN