परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की भूमि में होकर चलना

Teaching Legacy Letter
*First Published: 2016
*Last Updated: दिसंबर 2025
11 min read
कई वर्षों पूर्व मैं श्रोताओं के एक समूह से यीशु मसीह में विश्वासी होने के कारण हमें उपलब्ध अतिवृहत् प्रतिज्ञाओं के बारे में बात कर रहा था। एक विशेष संदेश में मैं उनसे इस विषय में बात करना निर्धारित किया था कि यीशु मसीह ने क्रूस पर क्या किया है और परिणामस्वरूप उन्हें क्या मिलेगा।
उपलब्ध प्रतिज्ञाओं के एक चित्रण के रूप में मैं श्रोताओं से कहा, “अब-यदि आप सबको बहुत भूख लगी हो और मैं संतरों के एक बाग का मालिक होता, तो मैं इस स्थिति से दो तरह से निबटता। मैं संतरे के बगीचे में जाता और एक संतरा लेता और उसे आपके पास लाता और कहता, ‘लो, यह खाओ।’ यह कार्य तात्कालिक रूप से आपकी भूख को समाप्त कर देता। या मैं आपको संतरे के बगीचे में बुलाता और फलों से लदे पेड़ों को दिखाता और आपको स्वयं तोड़ कर खाने का निमंत्रण देता।”
तब मैंने अपने सुननेवालों से कहा, यही दूसरा तरीका आज रात मैं उपयोग करने जा रहा हूँ। मैं आपको संतरा नहीं देने वाला हूँ-मैं आपको संतरे के बगीचे में ले जाने वाला हूँ।
इसी प्रकार ‘परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं में चलना’ विषय पर इस अध्ययन में मैं आपको इस दूसरे तरीके पर सफर करवाने वाला हूँ। मैं आपको संतरे के बगीचे में ले जाने वाला हूँ और स्वयं का पेट भरना आप पर निर्भर होगा।
इस श्रंखला के प्रत्येक भाग में मैं कुछ जरूरतो ं या समस्याओं पर बात कर रहा होऊँगा जो आमतौर पर हमारे जीवनों में उत्पन्न होती है। संक्षेप में, उन जरूरतों को पूरी करने या समस्याओं को सुलझाने के लिए व्यावहारिक तरीकों को बताने के लिए “मैं आप को बगीचे में ले जाने वाला हूँ।” कैसे? आपकी विशिष्ट स्थिति का पता लगाने और परमेश्वर के वचन की प्रतिज्ञाओं का दावा करने के द्वारा जो कि प्रत्येक विशेष स्थिति के लिए उचित हैं।
प्रतिज्ञाओं में प्रावधान
‘परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की भूमि में होकर चलना’ विषय पर इस प्रारंभिक शिक्षण में पहला बिंदु बहुत ही महत्वपूर्ण है, हमारे लिए परमेश्वर का प्रावधान उसकी प्रतिज्ञाओं में पाया जाता है। इस बिंदु का समर्थन करने वाला पवित्र शास्त्र का प्रमुख पद २ पतरस १: ३-४ है।
परमेश्वर की, दिव्य शक्ति ने उसके प्रति हमारे ज्ञान के द्वारा हमें सब कुछ दिया है जो हमारे जीवन और भक्ति के लिए जरूरी है जिसने हमें अपनी स्वयं की महिमा और अच्छाई के माध्यम से बुलाया है। इनके दारा उसने हमें अपनी महान और अनमोल बायदे दिए हैं, ताकि उनके माध्यम से आप दिव्य प्रकृति में भण ले सकें, और बुरी इच्छाओं के कारण हो ने वाले भ्रष्टाचार से बच सकें। NIV
हमें दो सत्यों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इन पदों में दोनों को ही पूर्ण काल में कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे पूर्ण हो चुके हैं। पद ३ हमें बताता है कि परमेश्वर की दिव्य शक्ति ने हमें सब कुछ दिया है जो हमें जीवन और भक्ति के लिए आवश्यक है। कृपया ध्यान दें कि यह पद यह नहीं बताती है कि परमेश्वर हमें सब कुछ देने जा रहा है जिसकी हमें जरूरत है। बल्कि, वह कहता है उसने पहले से ही हमें दे दिया है।
पद ४ आगे इस बिंदु पर दूसरे सत्य के साथ जोर देती है. “उस (परमेश्वर) ने हमें बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएँ दी हैं। स्पष्ट रूप से, परमेश्वर ने पहले से ही हमें सब कुछ दे दिया है जिसकी हमें कभी भी जरूरत पड़ेगी। यह हमारे पास कैसे आता है? वह इसे अपने वायदों के रूप में प्रदान करता है।
अपनी विरासत को प्राप्त करना
हम इस प्रारंभिक शिक्षण खंड में अपने दूसरे बिंदु पर आते हैं: परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ हमारी विरासत हैं। इस सच्चाई की जाँच करते हुए, हम देख सकते हैं कि नया नियम कितनी निकटता पुराना नियम को प्रतिबिंबित करता है। पुराना नियम में यहोशू नाम के एक अगुवे के अधीन, परमेश्वर ने प्रतिज्ञात देश की ओर अपने लोगो का नेतृत्व किया। नया नियम में, यीशु के नाम एक अगुवे के अधीन (इबानी भाषा में यहोशू का समानार्थी नाम) परमेश्वर अपने लोगों को प्रतिज्ञाओं के एक देश में ले जाता है। इसलिए परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ हमारी विरासत है।
‘परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की भूमि में होकर चलना’ विषय पर इन संदेशों में हमारा मुख्य लक्ष्य हमारी विरासत की एक स्पष्ट दृष्टिकोण विकसित करना और तब यह समझना है कि हम इसे किस प्रकार अपने अधिकार में कर सकते हैं।
अभी तक केवल बौद्धिक चर्चा से कहीं परे यह शिक्षण श्रृंखला अत्यंत व्यावहारिक होगी। प्रत्येक खंड एक विशिष्ट जरूरत या समस्या पर बात करेगी जो आमतौर पर हमारे जीवन में उम्पन्न होती है। तब मैं आपको दिखाऊँगा – कि परमेश्वर के विशिष्ट वायदों का पता लगाने और दावा करने के द्वारा किस प्रकार उस जरूरत को पूरा करने या उस समस्या को हल करना है जो एस पर लागू होते हैं।
यहोशू का वायदा
इस शिक्षण श्रृंखला में पालन की जाने वाली सभी बातों के आधार के रूप में, मैं एक मूलभूत सिद्धांत रखना चाहता हूँ। ऐसा करने के लिए, आईए एक वायदे की जाँच करें, जो एक अर्थ में, सभी वायदों का दावा करने के लिए कुंजी है। यह प्रभु द्वारा यहोशू से की गई एक प्रतिज्ञा है जब उसने उसे अपनी प्रजा की अगुवाई उनकी विरासत में करने के लिए नियुक्त किया। यह अद्भुत प्रतिज्ञा यहोशू अध्याय १, पद ८ में पाया जाता है, जहाँ यहोवा ने यहोशू से निम्नलिखित शब्द कहे थे।
“व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्यों कि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।” NAS
क्या बयान है! मुझे लगता है कि ऐसा कोई और वायदा नहीं है जो पूरी सफलता का अधिक पूरा आश्वासन देता है जैसा कि यहोशू को दिया गया। क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।” इस अद्भुत प्रोत्साहन में दो परिणाम शामिल हैं: समृद्धि और सफलता।
मैंने मनुष्य के साथ अपने व्यवहार में जाना है कि वास्तव में कोई भी कई वर्षो तक विफल रहना नहीं चाहता है। कहीं गहराई में, हर इंसान का जन्म सफलता पाने की एक गहरी लालसा के साथ हुआ है। इसलिए, जब लोग विफल हो जाते हैं, तो ऐसा इसलिए नहीं है कि वे विफल होना चाहते हैं। वे तो बस इसलिए विफल होते हैं क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि कैसे सफल होना है। सौभाग्य से हमने अभी जिस पद की जाँच की है वह हमें बताता है कि कैसे सफल हों। यहोशू से वायदा सफलता के लिए परमेश्वर का निश्चित मार्ग है।
शर्तो को पूरा करना
इस बिंदु पर हमारे लिए शर्तों की जाँच करना महत्वपूर्ण है जिन्हें परमेश्वर ने निर्धारित किया है। ये शर्ते इस पद में कुछ महत्वपूर्ण वाक्यांशों में व्यक्त है जिसका अभी हम अवलोकन कर रहे थे। सबसे पहले, “व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए।” (इस वाक्यांश में “चित्त” शब्द पर विशेष ध्यान दें)। दूसरा, “इसी पर दिन रात ध्यान दिए रहना।” दिल और दिमाग के साथ ध्यान करना है – जो कि हमारा भीतरी अस्तित्व है। निहितार्थ यह है कि हमें उसके वचन को अपने भीतर गहराई में प्रवेश करने देना चाहिए। तीसरा, आगे यह पद कहता है, “इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे।”
यहाँ प्रमुख शब्द “चित्त”, ध्यान” और “करना” है। उनके जवाब में - और मैं एक पल के लिए क्रम बदलने वाला हूँ – आपको क्या करना है? आपको परमेश्वर की व्यवस्था सोचना है, परमेश्वर की व्यवस्था बोलना है और परमेश्वर की व्यवस्था करना है। इस पूरी प्रक्रिया में सही ध्यान, सही बोलना और सही कार्रवाई शामिल है। हमारे विचारों, शब्दों और कार्यों का सही होना निर्धारित इस बात पर करता है कि क्या वे परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार हैं या नहीं।
कहना जो परमेश्वर कहता है
अपने जीवनों में इन सच्चाइयों को आगे स्थापित करने के लिए, अब हम नया नियम को देखेंगे। हम जिस परिच्छेद की जाँच करेंगे वह रोमियो १०ः ८-१० है, जो मुक्ति के लिए नया नियम के मुताबिक आवश्यकताओं को बताता है। यहाँ परमेश्वर के वचन के बारे में बात करते हुए पौलुस कहता है.
परन्तु क्या कहती है? यह, कि वचन तेरे निकट है, तेरे मुँह में और तेरे मन में है, यह वही विश्वास का वचन है, जो हम प्रचार करते हैं। कि यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। क्यों कि धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है। NAS
पद १० का और अधिक शाब्दिक अनुवाद होताः “धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है।” कृपया ध्यान दें कि इन पदों में, हम हृदय और मुँह का एक साथ मिलना देखते हैं। (बाद में इस शिक्षण में, हम क्रम को देखेंगे जिस में पौलुस इन कदमों को प्रस्तुत करता है)
सबसे पहले, मुझे दो महत्वपूर्ण अवधारणाओं को समझाने की आवश्यकता है जिनका यहाँ उपयोग किया गया हैं। बाइबल में ‘अंगीकार’ शब्द का एक विशेष अर्थ है। इसका शाब्दिक अर्थ ‘जैसा है वैसा ही कहना’ होता है। इसलिए, जब हम अंगीकार करते हैं, तब हम अपने मुँह से वैसा ही कह रहे हैं जैसा परमेश्वर अपने वचन में कहता है। यह हर उस विषय पर लागू होता है जो परमेश्वर के वचन में बताया गया है – चाहे यह संदर्भ पाप, उद्धार, चंगाई, या प्रार्थना के बारे में हो। अंगीकार करना हमारे मुँह के शब्दों को परमेश्वर के वचन से सहमत करना है।
रोमियों के इस परिच्छेद में ‘उद्धार’ एक सर्वसमावेषी शब्द है जिसमें वे सभी लाभ शामिल हैं जो क्रूस पर यीशु मसीह की मृत्यु के माध्यम से हमारे लिए दिए गए हैं। इसमें आत्मिक लाभ, शारीरिक लाभ, भौतिक लाभ, इस जीवन में लाभ, अगले जीवन में लाभ दोनों काल अनंतता शामिल हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, आईए अब इस बात को देखें कि अब पौलुस मुँह और हृदय के बीच संबंधों के बारे में क्या कहता है।
अपनी विरासत को प्राप्त करना
पौलुस इस जोड़ी शब्दों का प्रयोग तीन बार करता है – प्रत्येक पद में एक बार। पद ८ में, वह कहते हैं, “वचन तेरे निकट है, तेरे मुंह में और तेरे मन में है।” ध्यान दें कि पहले मुँह आता है फिर मन आता है। पद ९ में वह कहता है कि “यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्ध ार पाएगा। फिर से ध्यान दें कि मुँह, मन से पहले आता है। लेकिन १० वें पद में जहाँ पौलुस शब्दों की इस जोड़ी को दोहराता है, वह क्रम को उलटा कर देता है: “क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है।” वहाँ मुँह से पहले मन आता है।
मेरा मानना है कि क्रम में इस बदलाव का एक बहुत ही व्यावहारिक कारण है। कई बार, अपने अनुभव में परमेश्वर के सत्य का कायल होने तरीका सही अंगीकार करना होता है। यहाँ तक कि जब आप अपने मन में महसूस नहीं करते हैं कि आप परमेश्वर के वचन की एक विशेष सच्चाई पर विश्वास करते हैं, आप अपने मुँह से अपने विश्वास की पुष्टि करें कि यह परमेश्वर का वचन है तथा यह कि उसका वचन प्रारंभ से अंत तक सत्य है। इस कारण से क्योंकि परमेश्वर यह कहता है आप कहने के लिए तैयार हैं। एक निश्चित अर्थ में, आप स्वयं को नम् करते हैं - आप परमेश्वर के वचन के अधिकार के सामने स्वयं के सांसारिक मन का अनादर करते हैं। चूँकि परमेश्वर यह कहता है आप अपने मुँह से यह कहते हैं।
Into Our Hearts
उल्लेखनीय रूप से, आपके मुँह से यह आपके मन में जाता है। जब आप इसे अपने मुँह से दो बार कहते हैं, उस समय तक, यह आपके मन में स्थापित हो जाता है। तो आपके लिए यह कहना स्वाभाविक हो जाता है – क्योंकि यह आपके मन में है, और यह आसानी से आपके मन से मुँह में आता है।
अक्सर यही तरीका होता है जब हम स्वयं को परमेश्वर के वचन की सच्चाई में स्थापित करते हैं। सबसे पहले, हम अपने आप परमेश्वर के उद्धार में एकजुट करते हैं।वचन हमारे हमारे मुँह से हमारे मन में आता है और फिर हमारे मन से वापस हमारे मुँह में आता है। इस तरह, अंगीकार उद्धार के लिए किया जाता है।
लेकिन अंगीकार केवल पहला कदम है। इसके बाद अमल करना भी होगा। याकूब २.१७ और २६ के निम्नलिखित पद इस सत्य को बताते हैं – कि आपके मुँह और आपके मन में परमेश्वर के वचन के स्थापित हो जाने के बाद आप उसे अमल में लाते हैं।
वैसे ही विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है। NIV
और पुनः
निदान, जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है।
दूसरे शब्दों में, सिर्फ विश्वास करना और उसे कहना पर्याप्त नहीं है। हमें उस पर अमल भी करना है। तो, हम ठीक उसी सिद्धांत पर वापस आते हैं जो यहोशू के लिए स्थापित किया गया थाः परमेश्वर का वचन सोचना, परमेश्वर का वचन बोलना, परमेश्वर का करना। परिणाम की गारंटी है. सफलता।
अपनी विरासत को प्राप्त करना
क्या आप इस शिक्षा में बताई गई सफलता को देखने की इच्छा रखते हैं? क्या आप देखना चाहते हैं कि यह आपके अपने जीवन में एक वास्तविकता बन जाए? यदि आप परमेश्वर को बताना चाहते हैं कि उसके साथ आपके संबंध के इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की आपकी इच्छा है तो आईए उस इच्छा को निम्नलिखित प्रार्थना के द्वारा अभी उस पर व्यक्त करते हैं:
*Prayer Response
हे प्रभु, मैं दृढ़ता से विश्वास करता हूँ कि मेरे और मेरे परिवार के लिए आपके पास बहुत सारे वायदे हैं। मैं जानता हूँ कि उन वायदों को स्पष्ट रूप से आपके वचन में कहा गया है। मेरे लिए आपकी विरासत का एक स्पष्ट दृष्टिकोण विकसित करने में में मेरी सहायता कीजिए और फिर मुझे विश्वास के साथ इसमें कदम रखने के लिए सशक्त बनाएँ।
आज, प्रभु - इस प्रार्थना के साथ-मैं आपके हर वादे की पूर्ति के लिए अपनी लालसा को व्यक्त करता हूँ जो मुझ पर लागू होता है। मैं आपके सत्य को सोचना और आपके सत्य को बोलना चाहता हूँ। और तब मैं उस अंगीकार को अपने जीवन में उतारना चाहता हूँ। मुझे अपने जीवन में अंतिम परिणाम
मुझे अपने जीवन में अंतिम परिणाम - - आपमें सफलता लाने के लिए आपकी शक्ति में विश्वास करता हूँ। प्रभु, - आपकी प्रतिज्ञाओं के लिए - आपको धन्यवाद, जो मेरी विरासत है। आमीन ॥
कोड: TL-L108-100-HIN