परमेश्वर का वचन आपके लिए क्या करेगा - भाग 2

Teaching Legacy Letter
*First Published: 2015
*Last Updated: दिसंबर 2025
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हमारे जीवनों पर परमेश्वर के वचन का प्रभाव गतिशील हो सकता है - बशर्तेंकि हम उसकी प्रतिज्ञाओं और वादों के साथ एकरूप हों। इस विशय पर, किआपके लिए परमेश्वर का वचन क्या करेगा, छह-भाग की इस श्रृंखला में हमविशिष्ट पहलुओ' का अध्ययन करेंगे कि परमेश्वर का वचन हममे' क्या उत्पादनकरेगा। पहली किस्त में, हमने परमेश्वर के वचन की प्रकृति के बारे में सीखा।हमने पाया कि यह जीवित, ऊर्जावान, और मर्मज्ञ है। इसके अलावा, हमने देखाकि किस तरह से परमेश्वर का वचन और परमेश्वर की आत्मा एक दूसरे केपूरक हैं। वचन और आत्मा एक साथ काम करते हुए परमेश्वर की कुल रचनात्मकशक्ति के प्रतीक हैं।
अप ने प्रथम पाठ में हमने मैं ने बताया कि परमेश्वर के वचन के द्व ारा हममें परिणाम होता है वह इस पर निर्भर करता है कि हम किस प्रकार उस वचन पर प्रतिक्रिया देते हैं। परमे वर द्वारा अपेक्षित परिण् शाम फाप्त करने के लिए हमें अवश्य ही गंदगी और दुश्टता को एक तरफ रख देना है और दीनता के साथ उसे ग्रहण करना है। हमें अवश्य ही परमेश्वर के कर रहा था तो मैं बीमार पड़ गया। जब मैं कई महीनों तक अस्पताल में निस्तेज पड़ा रहा तो मैंने यह समझना प्रारंभ किया कि चिकित्सकों के पास उस मौसम में और उस स्थिति में उत्तरी अफ्रीका में मुझे चंगा करने के साधन नहीं थे। अस्पताल में भर्ती के इन दिनों से ठीक पहले मैं ने प्रभु को व्यक्तिगत वचन को हमारे लिए स्वयं परमेश्वर की ओर से संदेश के रूप में ग्रहण करना रीति से जाना था। मेरे बदलाव के द्वारा मैं ने यह विश्वास किया था कि है - ऐसा संदेश जो कि मानव उद्भव से कही बढ़कर है।
विश्वास किस प्रकार आता है
हमारी श्रंखला के इस भाग में हम प्रथम विशिष्ट परिणाम को देखने जा रहे हैं जो परमेश्वर का वचन आप में उत्पन्न करेगा। वह परिणाम विश्वास है। मैं व्यक्तिगत अनुभव में से आपके साथ साझा करने के द्वारा प्रारंभ करना चाहता हूँ कि मैं ने स्वयं किस प्रकार यह सबक सीखा।
द्वितीय विश्वयुद्ध
में जब मैं बितानी बलों सेना के साथ अस्पताल सहायक के रूप में कामबाइबल वास्तव में परमेश्वर का वचन है। फिर भी बाइबल में ऐसी कईअवधारणायें और सत्य पाई जाती है जिन्हे मैं अब तक नहीं समझता।
तोजब मैं उस अस्पताल के बिस्तर पर हफ्तों, महीनों पड़ा रहा तो मैं ने सचमें बोझ तले दब गया जिसे जॉन बनियन निराशा की केंचुली निराशाकी अंधेरी एकाकी घाटी कहता है।
अस्पताल में इस लम्बे थकाव दिनों केदौरान मैं मन में सोचता रहा, "यदि मुझमें विश्वास होता तो परमेश्वर मुझेचंगा करता।" हालांकि, अगला विचार जो हमेशा आता था वह यह होता :"परन्तु मुझमें विश्वास नहीं है।" वास्तव में उस कथन 'मुझमें विश्वास नहीं है - ने मेरे लिये सारी आशा समाप्त कर दी और मुझे निराशा कीघाटी में धकेल दिया।
अस्पताल में इस लम्बे थकाव दिनों केदौरान मैं मन में सोचता रहा, "यदि मुझमें विश्वास होता तो परमेश्वर मुझेचंगा करता।" हालांकि, अगला विचार जो हमेशा आता था वह यह होता :"परन्तु मुझमें विश्वास नहीं है।" वास्तव में उस कथन 'मुझमें विश्वास नहीं है - ने मेरे लिये सारी आशा समाप्त कर दी और मुझे निराशा कीघाटी में धकेल दिया।
तो विश्वास सुनने और सुनना परमेश्वर के वचन से होता है।
जब मैंने इस पद को पढ़ा तो दो शब्द पन्नों से उछल कर बाहर मेरीओर आए : "विश्वास आता है।" मैंने बार-बार उन शब्दों को दोहराया :"विश्वास आता है... विश्वास आता है।" परमेश्वर मुझसे कह रहा था कियदि मुझमें विश्वास नहीं है, तो मुझे वह मिल सकता है। मुझे वह यहदिखा रहा था: एक मार्ग है जिससेविश्वास आएगा।
जब मैं वापस गया और बार-बार उसपद को पढ़ा, मैंने विश्लेषण कियाकि वह मुझ से क्या कह रहा है। मैंआपको बताऊँगा कि मैंने क्या समझनाप्रारंभ किया। हमारे साथ परमेश्वर केव्यवहार में वह तीन क्रमिक चरणों केद्वारा हममें विश्वास लाता है। चरण एक
- परमेश्वर का वचन - हमें परमेश्वर के
वचन तक पहुँच बनाना जरूरी है। चरणदो : सुनना - हमें सच में परमेश्वर केवचन को सुनना है। हमें अपने संपूर्णf हृदय और मन को खोलना है। हमेंसुनना है कि परमेश्वर हमसे क्या कहरहा है, भले ही अन्य सभी बातों काबहिश्कार करना पड़े। हमें परमेश्वर कोअपने वचन के द्वारा हमसे बात करनेदेना है। चरण तीन : विश्वास - सुननेकी इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप विश्वास आता है। तीन चरण ये हैं :परमेश्वर का वचन, सुनना, और तब विश्वास।
यह कहने के द्वारा मैं आपको प्रोत्साहित करना चाहता हूँ कि यदि आपइस प्रक्रिया का अनुसरण करें तो परिणाम अवश्यंभावी है। यदि आपकाविश्वास नहीं है - यदि आप उस अन्धकार एकाकी घाटी में विश्वास केलिये संघर्ष कर रहे हैं - तो मैं आपको यह अद्भुत सत्य बताना चाहता हूँ : विश्वास आता है।
गहन व्यक्तिगत वचन
उस अद्भुत समझ के साथ, आईए अब हम उस पद के और पहलुओं कोदेखें। आपको यह जानने की जरूरत है कि "मसीह के वचन के लिये"वहाँ जिस शब्द का उपयोग किया गया है वह यूनानी शब्द रेमा है। बहुतवर्षों के अपने यूनानी अध्ययन के द्वारा मैंने सिखा है कि रेमा शब्द काअर्थ विशेष रूप से "शब्द जो कहा गया" है। जब आप इस पद में आगेके शब्दों को देखते हैं तो यह सत्य प्रगट होता है: "वचन के सुनने केद्वारा।" अर्थ प्रगट होता है क्योंकि यदि एक शब्द नहीं बोला जाता है तोआप उसे नहीं सुन सकते हैं। अतः यह सिद्धान्त केवल अपने बाइबल कोपढ़ने और अपने सामने रखे सफेद पृष्ठ पर काला निशान ढूँढ़ने से हीनहीं है। उन काले निशानों को ऐसी आवाज में बदलना है जिसे आप सुनसकें। विश्वास सुनने से आता है केवल बाइबल पढ़ने से नहीं।
कौन सी बात उन काले निशानों को आपसे व्यक्तिगत रूप से बातकरनेवाली आवाज के रूप में बदलने योग्य है? उत्तर पवित्र आत्मा है। जबपवित्र आत्मा परमेश्वर के वचन को सजीव करता है तो वह उसे आपकेलिये वास्तविक और व्यक्तिगत बनाता है। जब आप पवित्र आत्मा द्वाराआपको दिये गए उस वचन को सुनते हैं तो विश्वास आता है।
पवित्र आत्मा बहुत ही बुद्धिमान है! वह जानता है कि आपको किसी समयकिस वचन की आवश्यकता है। वह आपको परमेश्वर की वचन की ओर लेचलता है और तब वह उसे आपके लिये जीवित बनाता है। जब ऐसा होताहै तो आप जीवित परमेश्वर को आपसे अपने वचन के द्वारा बातें करतेहुए सुन सकते हैं। जब आप उस शब्द को सुनते हैं, विश्वास आता है -आपको जो चाहिए उसके लिये और जो कुछ परमेवर चाहता है कि उससमय आपके पास हो उसके लिये विश्वास।
परमेश्वर से एक संदेश
अपने पाठ में इस बिन्दु पर मैं आपको धर्म शास्त्र में वर्णित एक सबसेसुन्दर उदाहरण बताना चाहता हूँ कि परमेश्वर के वचन को सुनने के द्वारा किस प्रकार विश्वास आता है। हम कुँवारी मरियम के जीवन को देखनेजा रहे हैं। मुझे निश्चय है कि यह कहानी आपके लिये परिचित हैकि किस प्रकार वह नासरत नामक छोटे से गाँव में रह रही थी औरएक दिन परमेश्वर की ओर से एक सन्देश लेकर एक स्वर्गदूत उसके पायाआया। आईए, लूका 1 में पद 30 से शुरु करते हुए इस घटना के एक भागको पढ़ें :
स्वर्गदूत ने उस से कहा, हे मरियमः भयभीत न हो, क्योंकिपरमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। और देख, तू गर्भवतीहोगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशुरखना... मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, यह क्योंकर होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं। स्वर्गदूत ने उस को उत्तर दिया;कि पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थतुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवालाहै, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा। .... क्योंकि जो वचन परमेश्वरकी ओर से होता है वह प्रभावरहित नहीं होता। मरियम नेकहा, देख, मैं प्रभु की दासी हूं, मुझे तेरे वचन के अनुसार होः
तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
कुछ लोग मेरे आंकलन से असहमत होंगे परन्तु मेरा मानना है कियह घटना सबसे अधिक उल्लेखनीय आश्चर्यकर्म की कुन्जी है जिसकाकभी मानवजाति ने अनुभव किया है। जब कुँआरी मरियम ने यीशु केजन्म का अनुभव किया तो वह एक महान आश्चर्यकर्म का हिस्सा बनी।आनेवाले भाग में हम इस और स्पष्ट रीति से देखेंगे, जब कि मैंआपको दिखाऊँगा कि किस प्रकार मरियम उस महान आश्चर्यकर्म कोप्राप्त करने योग्य बनी।
सबसे पहले, स्वर्गदूत परमेश्वर से रेमा वचन लेकर आया। (स्मरण रखेंकि रेमा को कहे गए वचन के रूप में परिभाषित किया गया है)। यहशब्द कुछ ऐसा था जिसके लिये मरियम कभी स्वयं प्रार्थना नहीं करती।संभवतः वह कभी उसका सपना नहीं देखती। चूँकि उस समय मरियमएक अविवाहित स्त्री थी, परमे वर की ओर से ये वचन उसके मन मेंनहीं आए होते तब हम केवल यह कहकर समाप्त कर सकते हैं कि इसभाब्द पर पहल परमेश्वर की ओर से हुई। उसके लिये परमेश्वर का उद्देश्यस्वयं के लिये उसके कार्य या कल्पना से कहीं अधिक बढ़कर थे। एकरेमा वचन के रूप में परमेश्वर की योजना उसके पास आई- अर्थातएक कहा गया वचन।
इस अनुभव में पहले कद में किस प्रकार मरियम ने इस वचन परप्रतिक्रिया दी? सबसे पहले उसने उसे प्राप्त किया। उसने अपना हृदयखोला। उसने प्रतिरोध नहीं किया। उसने विरोध नहीं किया कि यहअसंभव है। उसने कहा, "देख, मैं प्रभु की दासी हूँ तेरे वचन केअनुसार मेरे साथ हो।" परमेश्वर के रेमा वचन- उसका कहा गया वचन- के लिये मरियम ने अपना हृदय खोला।
उसके अनुभव के दूसरे चरण में, उसका वचन पाने का बाद मरियम केसाथ क्या हुआ? उसमें विश्वास रोपित किया गया। क्या आपको स्मरणहै कि रोमियों 10:17 में क्या कहा गया?"विश्वास सुनने से और सुनना परमेश्वर केवचन से होता है।" जब हम अपने हृदयों जब हमको खोलते हैं और परमेश्वर के वचनको हममें जड़ पकड़ने देते हैं तो हममें अपने हृदयोंविश्वास रोपा जाता है।
उसके अनुभव के तीसरे चरण में, मरियमकी इच्छित प्रतिक्रिया का परिणाम क्याहुआ था? उसके विश्वास से आश्चर्यकर्मकरनेवाली सामर्थ्य उत्पन्न हुई जो उसवचन में था जो परमेश्वर ने उसे दिया था।स्वर्गदूत ने कहा, "परमेश्वर के लिये कुछभी असंभव नहीं।" उस पद का शाब्दिकयूनानी अनुवाद कहता है, "परमेश्वर काकहा गया कोई भी वचन प्रभावरहित नहींहोता।" इसे दूसरे प्रकार से, सकारात्मकरूप से बदलते हुए कहें तो : "परमेश्वरके कहे गए हर वचन में उसकी पूर्तिके लिये आवश्यक सामर्थ्य पाई जाती है।"इसका तात्पर्य है कि जब हम परमेश्वर सेएक वचन पाते हैं तो वह विश्वास उत्पन्नकरता है। इसके बदले में हमारा विश्वास उसको खोलते हैंऔर परमेश्वरके वचन कोहममें जड़पकड़ने देतेहैं तो हममेंविश्वास रोपाजाता है।वचन में निहित परमेश्वर की आश्चर्यकर्म करनेवाली शक्ति को कार्यरतबनाती है।
विश्वास में प्रतिक्रिया देना
कुँवारी मरियम की कहानी इस बात का सबसे सुन्दर और सिद्ध उदाहरणहै कि कैसे विश्वास आता है। विश्वासस रेमा वचन जिसके द्वारा पवित्रआत्मा हमें सचेत करता है के द्वारा आता है। इसका क्या तात्पर्य है?पवित्र आत्मा इस वचन को जीवित, वास्तविक और व्यक्तिगत बनाता है। जब हम इस वचन को प्राप्त करते हैं तो यह विश्वास उत्पन्न करता है। तबविश्वास पर हमारी प्रतिक्रिया उस वचन से सामर्थ्य उत्पन्न करती है जोपरमेश्वर हमें देता है। यह कार्य परमेश्वर के वचन को उस उद्देश्य पूरा करनेदेती है जिसकी उसने प्रतिज्ञा की है।परमेश्वर के प्रत्येक कहे गए वचन मेंजो हमारे पास आता है स्वयं की पूर्तिके लिये उसमें परमेश्वर की सामर्थ्यनिहित होती है।
जब हम इस सन्देश को समाप्त करतेहैं तो मुझे आपसे प्रश्न पूछने दीजिए।विश्वास इतना महत्वपूर्ण क्यों है?इबानियों 11:6 पद में इसका उत्तरबताया गया है :
और विश्वास बिना उसे प्रसन्नकरनाअनहोना है, क्योंकिपरमेश्वर के पास आनेवाले कोविष्वास करना चाहिए, कि वह
है; और अपने खोजनेवालों को)
परमेश्वर विश्वास की माँग करता हैऔर वह इस माँग से पीछे नहीं हटेगा।परन्तु धन्यवाद हो, कि प्रभु हमारे प्रतिबहुत ही अनुग्रहकारी और दयालु है।वह हमें दिखाता है कि कैसे उस विश्वास प्राप्त करना है जिसकी माँगवह करता है। वह हमें उस विश्वास को उपलब्ध कराता है और इस प्रकारहमें उसकी माँगों को पूरा करने योग्य बनाता है।
इसे अपनी प्रतिक्रिया बनायें
विश्वास किस प्रकार आता है? आईए इस सन्देश को समाप्त करते हुएएक बार और इस प्रक्रिया की समीक्षा करें। तीन चरण बताए गए हैं जो सुनिश्चित करता है कि विश्वास आता है। चरण एक : परमेश्वर के वचनको सुनने के द्वारा विश्वास आता है जिसे परमेश्वर हमसे बोलता है। चरणदो : परमेश्वर का आत्मा इसे हमारे लिये व्यक्तिगत और निजी बनाताहै। चरण तीन : यदि आप इस वचन को ग्रहण करेंगे, तो यह आपमेंविश्वास उत्पन्न करेगा। इन चरणों का अन्तिम परिणाम क्या है? तब आपकीविश्वास की प्रतिक्रिया ऐसी सामर्थ्य उत्पन्न करती है जो कि परमेश्वर कीप्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिये उसके वचन में निहित है।
क्या आपने कभी ये कदम उठाए हैं? जब हम इस सन्देश का अन्त कर रहेहैं तो क्या आप अभी प्रतिक्रिया देना चाहेंगे? यदि आप ऐसा करने केलिये तैयार हैं तो कृपया निम्नलिखित प्रार्थना को अपने स्वयं के विश्वासकी अभिव्यक्ति बनाएँ :
*Prayer Response
हे प्रभु, कृपया मुझसे अपना रेमा वचन कहें। मैं इसे सुननेके लिये कान लगाए हूँ। आपका धन्यवाद कि आपने इसेपवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा मेरे लिये वास्तविक औरव्यक्तिगत बनाया है। जैसा मरियम ने किया उसी प्रकारमैं भी आपके वचन को स्वीकार करता हूँ और मैं कहता हूँमेरे साथ आपके वचन के अनुसार ही हो। मैं मानता हूँ किजब मैं आपके वचन को ग्रहण करता हूँ तो विश्वास कीमेरी प्रतिक्रिया मेरे जीवन में मेरे जीवन के लिये आपकी
हे प्रभु, इस क्षण से लेकर मेरे जीवन में आपका वचन जो कुछ करेगा उसके लिये आपका धन्यवाद। आमीन ।
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