परमेश्वर के साथ आपकी चाल - भाग 2

Teaching Legacy Letter
*First Published: 2012
*Last Updated: दिसंबर 2025
14 min read
दो व्यक्तियों के मध्य हरेक निकट संबंध में नियमित, दो तरफा बातचीत की आवश्यक्ताहोती है। इसके बिना एक ऐसा संबंध बना नहीं रहता है। विवाह एक अच्छा उदाहरण है।एक दूसरे के प्रति सच्चे प्यार और अपने विवाह को सफल बनाने की सच्ची अभिलाषाके साथ एक पुरुष और स्त्री विवाह बंधन में बंध सकते हैं। परन्तु यदि वे अपने बीचनियमित सौजन्य संवाद स्थापित न करें और उसे बनाये न रखें तो उनका विवाह जल्दही टूट जाएगा। परमेश्वर के साथ मसीही के संबंध के बारे में भी यह बात सच है। बिनानियमित, खुले, दो तरफा संवाद के बिना, यह कभी भी सफल नहीं होगा। हमें अवश्यदोनों ही बातों को सीखना चाहिये अर्थात् परमेश्वर से नियमित बात करना और परमेश्वरहमसे नियमित बात करे।
परमेश्वर किस प्रकार बात करता है
परमेश्वर हमसे किस प्रकार बात करता है? मुख्य रूप से,अपने लिखित वचन बाइबल के द्वारा। बाइबल उनसभी बातों का आधार है जो परमेश्वर को सामान्यतः सभीविश्वासियों से कहना है। इससे परे, परमेश्वर के पास विशेषबातें हैं, जो वह हम में से प्रत्येक से व्यक्तिगत रूप से कहनाचाहता है।
बाइबल परमेश्वर से सभी सच्चे संवादों और उस मानक,दोनों ही बातों का मूल आधार है, जिसके द्वारा संवाद केकिसी भी अन्य संवाद की जाँच की जानी चाहिये। हालाँकि,बाइबल मात्र पढ़ना ही काफी नहीं होता है। 2 कुरिन्थियों 3:6में पौलुस कहता है, "शब्द मारता है परन्तु आत्मा जिलाताहै।" पवित्र आत्मा के बगैर, जो कुछ हम बाइबल के पन्नोंपर अपनी आँखों के सामने देखते हैं, वह मृत शब्द हैं। परन्तुजब ये शब्द पवित्र आत्मा के माध्यम बन जाते हैं तो हम फिरमात्र उन्हें ही नहीं देखते हैं। हम उन्हें परमेश्वर की स्वयं कीआवाज के रूप में अपने हृदय में सुनते हैं, जो हमसे सीधेऔर व्यक्तिगत रूप से बात करता है।
बहुत वर्षों पूर्व अपने स्वयं के अनुभव के द्वारा नाटकीय रूपसे मैं ने इसे प्रमाणित किया। एक पेषेवर दार्षनिक के रूपमें, मैं ने उसी रीति से, विष्लेशणात्मक तरीके से बाइबल काअध्ययन करने का निर्णय किया जैसे मैं किसी भी दार्शनिककार्य का अध्ययन किया होता। मैंने पाया कि यह एक दूरस्थ,निर्जन और दुर्बोध पुस्तक है। केवल कर्तव्य की भावना ने मुझेविवश किया कि पढ़ना जारी रखूँ। फिर, नौ महीनों के बाद,परमेश्वर ने मुझ पर व्यक्तिगत रूप से यीशु को परमेश्वरके पुत्र के रूप में प्रगट किया और मुझे पवित्र आत्मा से भरदिया। अगले दिन जब मैं ने एक बार फिर पढ़ना जारी रखनेके लिए अपना बाइबल खोला तो मैं परिवर्तन पर चकित था।यह ऐसा था मानो ब्रह्मांड में दो ही व्यक्ति हों- परमेश्वर और मैं स्वयं। हर शब्द जो मैं पढ़ रहा था वह ऐसा था जो परमेश्वरमुझसे व्यक्तिगत रीति से बात कर रहा था। यही तरीका है जिससेहर मसीही को अपना बाइबल पढ़ना चाहिए।बाइबल के द्वारा हमसे पवित्र आत्मा को बात करते हुए सुनने के लियेकुछ महत्वपूर्ण शर्तें हैं जिन्हें हमें पूरा करना चाहिये।
बाइबल के द्वारा हमसे पवित्र आत्मा को बात करते हुए सुनने के लियेकुछ महत्वपूर्ण शर्तें हैं जिन्हें हमें पूरा करना चाहिये।
Put Away Wrong Attitudes
सबसे पहले, हम किसी भी गलत नजरिए या रिश्ते को दूर रख करनाहै। याकूब कहता है, "इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़तीको दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय मेंबोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है" (याकूब1:21)। अस्वच्छ को "अशुद्ध, स्वच्छंद कल्पनाओं" के रूप में परिभाषितकिया जा सकता है: नटखटपन परमेश्वर के साथ बहस करने यापलटकर जवाब देने की प्रवृत्ति होती है। यह नम्रता के विपरीत होतीहै। समान अर्थ में पतरस कहते हैं, "इसलिये सब प्रकार का बैरभावऔर छल और कपट और डाह और बदनामी को दूर करके। नये जन्मेंहुए बच्चों की नाई निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसकेद्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ" (1 पतरस 2:1-2)। यहाँ, फिर,वे मनोवृत्तियों की सूची हैं जिन्हें हमें अवश्य ही दूर करना है, इससेपहले कि परमेश्वर हमसे बात करे। इस प्रकार के गलत नजरियों कोकिनारे करना हमें नम्र और सिखाने योग्य आत्मा के साथ बाइबल तकपहुँचने में सहायता करता है।
मरकुस 10:14-15 में यीशु ने एक छोटे बच्चे को एक पद्धति के रूपमें खड़ा करता है कि कैसे परमेश्वर के राज्य सच प्राप्त करना है।एक बच्चे की प्रतिक्रिया की आवश्यक विशेषता जिस पर यीशु इससंदेश में जोर देते हैं-शिक्षणीयता है पूर्वाग्रह या पक्षपात के बिनासीखने की एक खुली की इच्छा। जबकि हम अपनी बाइबल खोलतेहै, भजन में 25: 5 में राजा दाऊद एक प्रार्थना कहते हैं जो हम सभीके लिये एक अच्छा आदर्श हो सकता हैः "मुझे अपने सत्य पर चलाऔर शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्वार करनेवाला परमेश्वर है; मैं दिन भरतेरी ही बाट जाहता रहता हूँ।" बाट जोहना शब्द एक शांत, रोगी कीप्रत्याषा करने की मनोवृत्ति बताता है। परमेश्वर के वचन के द्वारा उससे सुनना इतना महत्वपूर्ण है कि यह हमारी व्यक्तिगत प्राथमिकताओंके क्रम में सबसे उच्च्च स्थान की माँग करता है।
Manage Your Commitments
परमेश्वर एक और महान जन की प्रार्थना में यह अवधारणा अच्छीतरह से व्यक्त किया जाता हैः "हमको अपने दिन गिनने की समझ दे"(भजन 90:12)। अन्य शब्दों, मूसा कहते हैं, "अपने प्रत्येक दिन हमारीगतिविधियों गतिविधियों और प्रतिबद्धताओं को व्यवस्थित करने में मददकर, कि उस समय को छोड़ दें जो परमेश्वर की ओर से सुनने केलिए और सच्ची बुद्धि को पाने के लिए आवश्यक आवश्यक है जोकेवल उसके पास से आता है। "क्योंकि बुद्धि यहोवा ही देता है, ज्ञानऔर समझ की बातें उसी के मुंह से निकलती हैं।" (नीतिवचन 2:6) 1
Be Doers of the Word
देता है, केवल परमेश्वर का वचन सुनना ही पर्याप्त नहीं होता है।"परन्तु वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जोअपने आप को धोखा देते हैं।" लेकिन कर्ता बनो" (याकूब 1:22)। वहआगे कहते हैं कि परमेश्वर का वचन सुनना आइने में देखने के समानहै। यह हमें हमारे जीवन के उन क्षेत्रों को दिखाता है जो परमेश्वरको नहीं भाता है। लेकिन व्यावहारिक रूप से हमें इस से केवल तबही लाभ मिलेगा जब हम उन परिवर्तनों या समायोजनों को पूरा करेंगेजो आईना इंगित करता है कि आवश्यक है।
यूहन्ना 17:17 में यीशु हमें एक प्रतिज्ञा देता है जो धर्मशास्त्र केसिद्धांत को समझने की कुंजी है: "यदि कोई उसकी इच्छा पर चलनाचाहे तो उस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि परमेश्वर की ओरसे है या मैं अपनी ओर से कहता हूँ।" ज्ञान का सिद्धाांत केवल उन्हींलोगों को दिया जाता है जो उन बातों को करना चाहते हैं जो उन्हेंसिखाया जाता है। आज्ञाकारिता हमें अगले सत्य की ओर ले चलताहै परन्तु अनाज्ञाकारिता सत्य से दूर कर देता है और हमें गलतियोंकी ओर मोड़ देता है।
Pray
बाइबल को इस प्रकार पढ़ना कि हम परमेश्वर की आवाज को सुनें।लेकिन यह परमेश्वर के साथ हमारी बातचीत का आधा है। दूसराआधा प्रार्थना में है। श्रेष्ठगीत में दूल्हा दुल्हिन से कहता हैः "हे मेरीकबूतरी, पहाड़ की दरारों में और टीलों के कुज्ज में तेरा मुख मुझेदेखने दे, तेरा बोल मुझे सुनने दे, क्योंकि तेरा बोल मीठा, और तेरामुख अति सुन्दर है" (श्रेष्ठगीत 2:14)। यह अपने विश्वास करने वालोंके प्रति मसीह के दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता हैः वह हमारी आवाजको सुनना और हमारे साथ निकट व्यक्तिगत संबंध रखना चाहता है।जब हम प्रार्थना में परमेश्वर के निकट आते हैं तो हमें हमेशा इसबात को मन रखने की आवश्यकता है कि वह उदासीन या दुर्गमनहीं है। इसके विपरीत, वह हमारी प्रार्थनाओं को सुनना और उनकाउत्तर देना चाहता है।
Relationship Is the Key
प्रार्थना में मात्र निवेदन अर्थात याचनााओं की सूची से अधिक बहुतकुछ शामिल होती है जिन्हें हम परमेश्वर के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं।यदि हम पुनः प्रभु की प्रार्थना की रीति को देखें तो हम देखेंगे कि इसप्रार्थना का पहला आधा हमें परमेश्वर के प्रति सही मनोवृत्ति स्थापितकरने के लिए है। केवल इस के बाद हम अपनी अपनी याचिकाओं कोपेष करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। सब के बाद, यीशु ने हमें याददिलाता है, "सो तुम उन की नाई न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारेमाँगने से पहिले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या क्या आवश्यक्ता है"(मत्ती 6:8)। प्रार्थना में क्या मायने रखता है, वह परमेश्वर को उनजरूरतों के बारें में सूचित करना नहीं है जिन्हें वह पहले से जानताहै। लक्ष्य उसके साथ इस तरह का एक संबंध स्थापित करना है किअपनी जरूरतों की आपूर्ति के लिए उस पर भरोसा करें।
यदि हम केवल अपने स्वयं की क्षमता पर निर्भर रहते हैं, तो हम में सेकोई भी उस तरह प्रार्थना नहीं कर सकता जैसा हमें करना चाहिए।यह जानकर परमेश्वर ने हमें उसी व्यक्ति के द्वारा सहायता उपलब्धकराया है जिसकी हमें प्रार्थना में जरूरत है और जिसे उसने बाइबलहालांकि, जैसा कि याकूब हमें अपने पत्र में चेतावनी की व्याख्या करने के लिए नियुक्त किया है अर्थात् पवित्रात्मा । रोमियों 8:26-27 में पौलुस हमारी प्रार्थना में पवित्रात्मा की भूमिका केबारे में वर्णन करता है:
“Likewise the Spirit also helps in our weaknesses. For we do not know what we should pray for as we ought, but the Spirit Himself makes intercession for us with groanings which cannot be uttered. Now He who searches the hearts knows what the mind of the Spirit is, because He makes intercession for the saints according to the will of God.”
यहाँ पौलुस कमजोरी (निर्बलताओं, केजेवी अनुवाद) के बारे में बातकरते हैं। इस संदर्भ में वह किसी भी शारीरिक बीमारी के बारे में बातनहीं कर रहे हैं, बल्कि हमारे कामुक स्वभाव में निहित एक कमजोरीके बारे में। यह कमजोरी को दो तरह से व्यक्त की जाती है। कभीकभी हम जानते हैं कि हमें प्रार्थना करना चाहिए परन्तु हमें मालूमनहीं होता है कि किस बात के लिये प्रार्थना करना है। अन्य समय में,हमें मालूम होता है कि किन बातों के लिए प्रार्थना करना है, लेकिनहमें मालूम नहीं होता है उसके लिए कैसे प्रार्थना करना है। हमें यहदर्शाते हुए कि किस प्रकार प्रार्थना करना है और किस बात के लिएप्रार्थना करना है, पवित्र आत्मा हमारी विशेष स्थिति, के अनुसार, हमारीआवश्यक सहायता की आपूर्ति करता है। केवल स्वीकार्य प्रार्थना जोहम परमेश्वर से कर सकते हैं, जो वह पहले पहल हमें पवित्र आत्माके द्वारा देता है।
Led by the Spirit
अब भी पवित्र आत्मा पर हमारी निर्भरता और आगे जाती है। यहकेवल बाइबल को समझने या यह जानने तक सीमित नहीं है किकैसे प्रार्थना करना है। पवित्र आत्मा परमेश्वर द्वारा नियुक्त ऐजेंट हैकि हमारे जीवन के हर चरण में हमारी अगुवाई करे। "इसलिये किजितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चला, चलते हैं, वे ही परमेश्वरके पुत्र हैं" (रोमियों 8:14)। इस प्रकार हम स्वयं को पवित्र आत्मा केसाथ दुहरा संबंध पाते हैं जैसा कि हमारे पिछले पत्र में 'द्वार' और'मार्ग' के दुहरे चित्र का वर्णन किया गया (मत्ती 7:14 देखें)। परमेश्वरके संतान बनने के लिये हमें अवश्य ही पवित्र आत्मा से जन्म लेना है(यूह. 1:12, 3:1-8 देखें)। यह "द्वार" में प्रवेश करना है। इस प्रकारपरमेश्वर की संतानों के रूप में जीने के लिए हमें अवश्य ही पवित्रआत्मा की अगुवाई प्राप्त करना चाहिए। यही तो "मार्ग" में चलना है।
नया जन्म के द्वार में प्रवेश करने के बाद एक परीक्षा जो अकसरहमारे सामने आती है, वह कुछ धार्मिक नियमों के स्थान पर पवित्रआत्मा की व्यक्तिगत अगुवाई पाना है। हम स्वयं से कहते हैं, "यदिमैं प्रार्थना करूँ और प्रतिदिन एक घंटा अपनी बाइबल पढ़ें." औरयदि मैं नियमित रूप से आराधना में भाग लूँ और अपना दसवाँश दूँ,और यदि मैं कुछेक प्रकार के आनंद की बातों को छोड़ दूँ तबमैं एक सफल मसीही जीवन जीऊँगा।" परन्तु यदि यह इस प्रकारनहीं होता है! इस प्रकार के और अन्य नियम बहुत अच्छे औरचाहनेयोग्य होते हैं। परन्तु वे पवित्र आत्मा की व्यक्तिगत सहभागिताऔर अगुवाई का विकल्प नहीं हो सकते हैं।
वास्तव में, धार्मिक नियमों में अपना भरोसा रखने के द्वारा, हम वास्तवमें पवित्र आत्मा का अनादर कर रहे हैं। जो कुछ जरूरत हो वह सबयदि नियम पूरा करता तो परमेश्वर हमें पवित्र आत्मा क्यों देता? जबपौलुस ने गलातियों को लिखा तो वे यही गलती कर रहे थे, "क्यातुम ऐसे निर्बुद्धि हो, कि आत्मा की रीति पर आरंभ करके अब शरीरकी रीति पर अंत करोगे (गलातियों 3:3)। हमारे जीवनों में पवित्रआत्मा जो काम प्रारंभ करता है उसे केवल वही पूरा कर सकता है।
पवित्र आत्मा की आवाज
पवित्र आत्मा द्वारा अगुवाई पाने की इस आवश्यकता को जानकरमसीही अकसर प्रतिक्रिया देते हैं, "लेकिन मुझे कैसे निश्चय हो सकताहै कि जो मेरी अगुवाई कर रहा है वह पवित्र आत्मा ही है? मैं उसकीआवाज कैसे पहचान सकता हूँ?" कई बार मैं एक और प्रश्न के द्वाराइस प्रश्न का सामना करता हूँ: "यदि मेरे फोन की घंटी बजे और मैंउसका उत्तर दूँ तो मुझे कैसे पता होगा कि दूसरी तरफ मेरी पत्नीहै? मैं कैसे उसकी आवाज पहचानता हूँ?" निश्चय ही इसका उत्तरहै कि मैं अपनी पत्नी की आवाज पहचानता हूँ क्योंकि मैं अपनी पत्नीको जानता हूँ। अपनी पत्नी के साथ अंतरंग परिचय मेरे लिये उसकीआवाज को पहचानना आसान बनाता है।
यही बात पवित्र आत्मा के साथ हमारे संबंध में भी लागू होती है।आत्मा की आवाज को पहचानने के लिए, अवश्य ही हमें आत्मा केसाथ अंतरंग संबंध बनाना चाहिए। बहुत से मसीही पवित्र आत्मा केव्यक्तित्व को नहीं मानते हैं। वे समझते हैं कि परमेश्वर पिता व्यक्तिहै, पुत्र मसीह व्यक्ति है, परन्तु वे नहीं देखते कि यही बात आत्माके बारे में सच है। फिर भी वह उतना ही एक व्यक्ति है जितना किपिता और पुत्र हैं। हमें उसी समान व्यक्तिगत रीति से उसे जाननेकी आवश्यकता है जैसे हम पिता और पुत्र को जानते हैं।
जितनी अच्छी तरह हम पवित्र आत्मा को जानेंगे उतना ही स्पष्ट रीतिसे हम उसकी आवाज को पहचानेंगे और अगुवाई की उसके विभिन्नरूपों को पहचानेंगे। जब एक विवाहित दंपति लंबे समय तक साथरहते हैं तो वे परस्पर संवाद करने के तरीके विकसित कर लेते हैंजिसमें शब्दों में अभिव्यक्ति की आवश्यक्ता नहीं होती है। एक मौन,माथे की सिकुड़न, एक आलिंगन, एक विशेष दृष्टि ये सभी एकपूरे वाक्य से बढ़कर संवाद कर सकते हैं।
यही बात पवित्र आत्मा के साथ हमारे संबंध में लागू होती है। वहहमेशा शाब्दिक आज्ञा नहीं देते हैं। उसके पास हमारी अगुवाई करनेया हमें प्रभावित करने के बहुत से तरीके हैं: एक अंतरिक चेतावनी,असहमति का एक मौन, प्रोत्साहन की एक गर्माहट, एक हल्का सासंकेत जो अपूर्वदृष्ट कार्य के लिये प्रेरित करता है। हम पवित्र आत्माकी अगुवाई के प्रति जितना अधिक संवेदनशील बनेंगे उतना ही हमसंसार में परमेश्वर के सच्चे पुत्रों के रूप में शंति और निश्चयता केसाथ जी सकेंगे।
क्रिया कोण त्यादि कुल किकर खिदयों
मान लें कि हम अपनी मसीही चाल में ठोकर खाते हैं और गिरभी जाते हैं! क्या इसका तात्पर्य यह है कि हम पराजित हो गये हैंऔर नकल चाहिए?और इस बारे में हम कुछ नहीं कर सकते हैं? निश्चय ही नहीं! राजादाऊद के प्रोत्साहन के वचन ये हैं:
"मनुष्य की गति यहोवा की ओर
से दृढ़ होती है, और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है, चाहे वहगिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामे रहता
है" (भजन 37:23-24)
दाऊद ने व्यक्तिगत अनुभवसे ये बातें लिखीं। वह जानते थे कि गिरनाक्या होता है। एक समय उसने एक मित्र की पत्नी के साथ व्यभिचारकिया था; और तब, अपने अपराध को छिपाने के लिये उसने उसव्यक्ति को मरवा डाला था जिसकी पत्नी से उसने व्यभिचार कियाथा। कुछ समय तक उसने अपना पाप छुपाने का प्रयास किया, परन्तुपरमेश्वर ने अपनी करुणा में नातान नबी की सेवा के द्वारा उसे प्रकाशमें लाया। अंगीकार और पश्चाताप के द्वारा, अंततः दाऊद को क्षमामिली और वह पुनःस्थापित किया गया (2) शमुएल अध्याय 11 और 12)।
पापांगीकार करने की इच्छा से पूर्व दाऊद जिस शारीरिक औरभावनात्मक पीड़ा से गुजरा उसका वर्णन भजन 32:3-5 में दिया गया हैः
“When I kept silent, my bones grew old through my groaning all the day long. For day and night Your hand was heavy upon me; my vitality was turned into the drought of summer. I acknowledged my sin to You, and my iniquity I have not hidden. I said, “I will confess my transgressions to the LORD,” and You forgave the iniquity of my sin.”
उस अंतिम वाक्य के लिए परमेश्वर का धन्यवाद हो, "तूने क्षमा करदिया!" कभी भी शैतान यह कहकर आपको बहकाने न पाये कि आपबहुत दूर चले गए हैं या तुम्हारा पाप परमेश्वर के क्षमा करने से बढ़करशोचनीय है। याद रखें, शैतान सभी मसीहियों पर "दोष लगाने वाला"है (प्रका. 12:10)। उसका उद्देश्य हमें अपराधी, अयोग्य, पराजित महसूसकराते रहना है। परन्तु परमेश्वर ने हमारी पूर्ण क्षमा और पुनःस्थापनके लिये प्रबंध कर दिया है।
विश्वासी के जीवन में पाप के लिए परमेश्वर के दुहरे प्रबंध को 1यूहन्ना 2:1 में प्रगट किया गया हैः "हे मेरे बालको, मैं ये बातें तुम्हेंइसलिये लिखता हूँ कि तुम पाप न करो और यदि कोई पाप करे, तोपिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात् धार्मिक यीशु मसीह।"यह प्रबंध का पहला भाग है: "कि तुम पाप न करो।" परमेश्वर केअनुग्रह और सामर्थ में विश्वास के द्वारा हमारे लिए पाप की अधीनतासे मुक्त होकर जीना संभव है। (रोमि. 6:1-14 देखें)। हालाँकि यूहन्नालिखता है: "और यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एकसहायक है, अर्थात् धार्मिक यीषु मसीह।" यह परमेश्वर के प्रबंध कादूसरा भाग हैः यदि हम पाप करें तो हमें केवल पश्चाताप और दीनताके साथ अपने मध्यस्थ, यीशु मसीह की ओर फिरने की आवश्यकताहै। वह हमारे मामले को पिता परमेश्वर के पास ले जाएगा हमारे लिएपूर्ण क्षमा और शुद्धीकरण प्राप्त करेगा। "यदि हम अपने पापों को मानलें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्धकरने में विश्वासयोग्य और धर्मी है" (1 यूहन्ना 1:9)।
इस प्रकार क्षमा और शुद्धता पाकर हम एक बार और अपनी मसीहीचाल को, अपने विश्वास से बढ़कर परमेश्वर की विश्वासयोग्यता केप्रति सचेत होकर, बिना किसी अपराधभाव या अयोग्यता की सुस्तभावना के साथ प्रारंभ कर सकते हैं।
“For I am confident of this very thing, that He who began a good work in you will perfect it until the day of Christ Jesus.” (Philippians 1:6 NASB)
“Faithful is He who calls you, and He also will bring it to pass.” (1 Thessalonians 5:24 NASB)
A Prayer of Commitment
इस समय आप प्रभु के प्रति अपने संबंध में और अधिक समर्पण कीआवश्यकता महसूस कर रहे होंगे। यह एक अच्छी अभिलाषा है, औरआप सुनिश्चित हो सकते हैं कि वह भी आप के साथ और निकटतासे चलना चाहता है। अपनी अभिलाषा को शब्दों में व्यक्त करने केलिए निम्नलिखित प्रार्थना के साथ इस शिक्षा को समाप्त करें:
*Prayer Response
प्रिय प्रभु, मेरी अभिलाषा आपके साथ निकटतम चाल में चलनेकी है। मैं आपको अपने वचन के द्वारा मुझसे बात करते हुएसुनना चाहता हूँ। मैं आपके पवित्र आत्मा की आवाज को सुननाचाहता हूँ और मेरे लिए जो कुछ आप चाहते है उसमें आपकीआत्मा की अगुवाई पाना चाहता हूँ। इस प्रक्रिया को बाधितकरने वाली हर मनोवृत्ति को दूर करने और एक विनम्र तथासीखनेवाले हृदय के साथ आप और अपके वचन तक पहुँचनेके लिए मैं अपने आपको समर्पित करता हूँ।
आपकी सहायता से, आपकी आत्मा में अधिक गहरे संबंध,व्यक्तिगत संगति और अगुवाई में, मैं आपके साथ अपने संबंधमें और निकट आने के लिए आवश्यक कदम उठाऊँगा। औरप्रभु यदि मैं ठोकर खाऊँ, तो मैं आपका धन्यवाद करता हूँ किजब मैं पश्चाताप में आपके पास आऊँ तो आप मुझे अपने हाथोंमें उठा लेंगे।
प्रभु, आपको धन्यवाद, करता हूँ कि जो भला काम आपने मुझमेंप्रारंभ किया है उसे आप पूरा करेंगे। आप उसे पूरा करेंगे।बड़े धन्यवाद के साथ कि आप मुझे लगातार अपने निकट लेजाएँगे, आपकी विश्वासयोग्यता में मैं आनंद करता हूँ। यीशु केनाम में। आमीन।
कोड: TL-L089-100-HIN