मसीह में आशा - भाग १

Teaching Legacy Letter
*First Published: 2008
*Last Updated: दिसंबर 2025
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क्या आप में कुछ ऐसा है जो मृत्यु शब्द के उल्लेख पर भड़कता है? क्या आपकी पहली प्रतिक्रियापढ़ने से रुक जाना है? यदि हाँ, तो यह एक निश्चित संकेत है कि आप को विशेश रूप से, इससंदेश के प्रति अपना हृदय खोलने की जरूरत है। हमारी समकालीन संस्कृति में, ऐसी किसी भी चीजको हटाने का एक अनजाना प्रयास किया गया है जो मृत्यु की अवधारणा से अप्रिय या दुःखद होसकती है। हम अब कब्रिस्तान के बारे में नहीं बोलते हैं, इसके बजाय हम "एक स्मारक उद्यान" जैसेवाक्यांश का उपयोग करते हैं। और दफनाने से पहले जब मृत व्यक्ति के शरीर को देखने के लिएप्रदर्शित किया जाता है, तो मृत्यु के कारण होने वाले परिवर्तनों को कम करने का हर संभव प्रयासकिया जाता है।
"फिर भी, मेरा मानना है कि यह महत्वपूर्ण है कि हम स्वयंको एक साधारण, उद्देश्यपूर्ण, अपरिवर्तनीय तथ्य को भूलने नदेंः मृत्यु वास्तविक है और यह अप्रिय है। यह दर्दनाक और क्रूरहै। जीवन का कोई भी दृश्य जो इस तथ्य को स्वीकार नहींकर सकता है वह भ्रामक और अवास्तविक है। कोई भी दर्शनया धर्म जिसमें मृत्यु की कठोर वास्तविकता का एक मुक्तिसबंधी उत्तर नहीं है, वह मानवता की जरूरतों को पूरा करनेके लिए अपर्याप्त है। जो बात मसीही धर्म को अन्य सभी धर्मोंऔर दर्शनों से अलग करती है वह यह है कि इसमें मृत्युका सकारात्मक, सिद्ध उत्तर है।
जब आधुनिक चिकित्सा एक शारीरिक समस्या का सामनाकरती है, तो वह तीन कथन प्रदान करना चाहती हैं: रोग की पहचान, एक पूर्वानुमान, और एक उपाय। रोग की पहचानकारण पता करती हैं; पूर्वानुमान रोग के इलाज की भवियवाणी करता है; और उपाय, निश्चित रूप से, बीमारी का जवाबहोता है।
जब हम मृत्यु के विाय का सामना करते हैं, तो बाइबल हमेंइन तीनों की पेशकश करती है। पवित्र शास्त्र में बहुत हीसरलता से निदान बताया गया हैः
सरलता से निदान बताया गया है: "इसलिये जैसा एक मनु यके द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आईऔर इस रीति से मृत्यु सब मनु यों में फैल गई इसलिये
कि सब ने पाप किया" (रोमियों 5:12)।
इसलिए, पाप के माध्यम से मृत्यु आई। अगर कभी पाप नहींहुआ होता, तो कभी मृत्यु नहीं आती। लेकिन चूं कि सभीमनुश्यों ने पाप किया है, इसलिए मृत्यु सभी पर आती है।
अपनी भवि यवाणी में, बाइबल बताती है किमृत्यु तीन क्रमिक चरणों में होती है। पहलीआत्मिक मृत्यु है। अच्छे और बुरे के ज्ञान केपेड़ के बारे में चेतावनी देते हुए परमे वरने आदम से कहा थाः "
पर भले या बुरेके ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभीन खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फलखाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा” (उत्पत्ति
2:17)1
परमेवर ने आदम से कहा "जिस दिन तुम खाओगे उसी दिनतुम मर जाओगे।" जैसा कि हम मृत्यु को समझते हैं, आदमऔर 900 से वर्षों तक जीवित रहा। लेकिन जिस दिन उसनेपाप किया उसी दिन वह परमे वर के साथ एक जीवन से दूरया अलग हो गया था। उसी क्षण वह आत्मिक रूप से मर गयाथा। इफिसियों 2: 1 में पौलुस ने इफिसुस में मसीहियों कोयाद दिलाता है कि मसीह को जानने से पहले उनकी आत्मिकस्थिति क्या थीः "
और उस ने तुम्हें भी जिलाया, जो अपनेअपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे।"
पौलुस एक भौतिक मृत्यु की बात नहींकर रहा था, बल्कि एक आत्मिक मृत्युईश्वर से अलगाव की बात कर रहा था।एक बार जब मनु य की आत्मा कोपाप के द्वारा परमे वर से दूर कर दियागया, तो उसका भौतिक जीवन एक बैटरीउसका क्षय होने लगता है।
सरा चरण शारीरिक मृत्यु है। इसे ही लेने के लिए हम वास्तव में "मृत्यु" कहते हैं शरीर से आत्मा का अलग हो जाना। शरीर की दा में एक दृश्य परिणाम होता है।
तीसरा चरण वह है जिसे बाइबल "दूसरी मृत्यु" कहती है। यहकुछ ऐसा है जो केवल पवित्रशास्त्र के प्रकाशन के माध्यम सेजाना जाता है:
"यह आग की झील तो दूसरी मृत्यु है। औरजिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला,
वह आग की झील में डाला गया" (प्रका. 20:14-15)।
इस तस्वीर का अध्ययन करते हुए हम दो महत्वपूर्ण तत्व देखतेहैं। पहला, यह दूसरी मृत्यु परमेश्वर की उपस्थिति से अंतिम,शाश्वत, अपरिवर्तनीय रूप से दूर हो जाना है। वहीं दूसरी मृत्युसे वापसी का कोई रास्ता नहीं है। दूसरा, यह चेतना की समाप्तिनहीं है, क्योंकि चेतना की समाप्ति कभी नहीं होती है। इसजीवन और उसके बाद दोनों में व्यक्तित्व सचेत रहता है। हमअपनी ही चेतना से कभी नहीं बचते हैं।
निसंदेह, मृत्यु का उपाय यीशु है, जो शैतान के हाथों हमारीमृत्यु का बदला लेने के लिए आया। हमारी मृत्यु का दंड स्वयंपर ले कर उसने यह किया। इस तरह, उसने हमें मृत्यु केभय से मुक्त किया है।
यूहन्ना 10 का कहता है कि ौतान चोर था जो चोरी करनेआया था। लेकिन यीशु ने कहा, "मैं इसलिए आया हूँ कि वेजीवन पायें और बहुतायत से पायें।" इसलिए यीशु ने हमेंअपनी विरासत वापस दिया। यीशु के साथ हमारे संबंध में, हमपरमे वर के लिए प्रसन्न और स्वीकार्य हो जाते हैं। दोश दूरहो गया है। भय दूर हो गया है। हम प्रेरित यूहन्ना के साथ कहसकते हैं, "अन्धकार मिटता जाता है और सत्य की ज्योति अभीचमकने लगी है" (1 यूहन्ना 2:8)।
उसने यह कैसे किया ?
पवित्रशास्त्र का संपूर्ण प्रकाशन प्रार्या चत्त में केंदित है क्रूसपर यीशु का बलिदान, और उसका विजयी पुनरुत्थान। प्रायश्चितपापी को परमेश्वर के पक्ष में पुनर्स्थापित करता है। यह पूर्णमेलमिलाप और सहभागिता है।
एक ज्वलंत तस्वीर जो सुसमाचार के पूरे संदे में प्रायश्चितके स्थान का वर्णन करती है, वह एक पहिये का है। एक सामान्यपहिये में, तीन खंड होते हैं: बाहरी वृत्त, तीलियाँ और पहियेकी नाभि। इस चित्र में, बाहरी वृत्त हमारे जीवन के प्रत्येकक्षेत्र के लिए परमेश्वर के संपूर्ण प्रावधान का प्रतिनिधित्व करता है- आत्मिक, भा शारीरिक और भौतिक, समय के साथ औरअनंत काल तक। सुसमाचार के माध्यम से परमे वर का पूर्ण प्रावधान पहिये के पूर्ण-कक्षीय चक्र की तरह है। इसमें सब कुछशामिल है।
बाहरी पहिये का समर्थन करने वाली तीलियाँ ऐसे तरीके हैंजो परमे वर प्रावधान करता है। एक तीली क्षमा होगा, जोहमें शांति देता है; दूसरी तीली चंगाई है, जो हमें स्वास्थ्य देताहै, एक और छुटकारा है, जो हमें स्वतंत्रता देता है; और एकअन्य पवित्रीकरण होगा, जो हमें पवित्रता प्रदान करता है। इसतरह, तीलियाँ बाहरी रिम को संभालती हैं, जो कि परमे वरका प्रावधान है।
केंद्र - पहिये की नाभि - प्रायश्चित है। तीलियाँ नाभि से टिकीहुई होती हैं। नाभि के बिना उनके पास अपने टिकने के लिएकुछ भी नहीं है। इसके अलावा, नाभि के माध्यम से चलाने कीसामर्थ्य आती है जो पहिये को घुमाती है। यह प्रायश्चित काकेंद्र है जिस पर बाकी सब निर्भर करता है - जिसके माध्यमसे मसीही जीवन के लिए सामर्थ्य की आपूर्ति की जाती है।इब्रानियों 2:9 इसे और अधिक स्प ट करता है:
पर हम को यीशु जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गयाथा, मृत्यु का दुख उठाने के कारण महिमा और आदर कामुकुट पहिने हुए देखते हैं; ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से
हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे।
उस अंतिम वाक्यांश पर ध्यान देंः "ताकि परमेश्वर के अनुग्रहसे हर एक मनु य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे।" उसनेहमारी मौत का स्वाद चखा; उसने हमारा स्थान ले लिये। हमपर जो कर्ज था वह उस पर आया। यह यशायाह 53:6 में पुनःकहा गया है:
हम तो सब के सब भेड़ों की नाई भटक गए थे; हम मेंसे हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने
हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया।
जिस भाब्द का अनुवाद 'अधर्म' किया गया है, उसका अर्थ"विद्रोह" भी होता है। संपूर्ण मानव जाति का विद्रोह उस वाक्यांशमें बताया गया है। हम में से हर एक ने अपना मार्ग चुनअगर आपको एक से भी ज्यादा शिक्षण लिया। लेकिन जब यीशु क्रूस पर लटका,तो हमारा सारा विद्रोह उस पर लाद दियागया था। और फिर, जब वह वहाँ लटकाथा, तो उस पर विद्रोह के सभी बुरे परिणगाम आएः बिमारी, त्यागा जाना, दर्द, पीड़ाऔर अंत में मृत्यु। लेकिन वह अपने लिएनहीं मरा; वह हमारी मौत मर गया। उसनेहमारे स्थान पर मृत्यु का स्वाद चखा।
पुनःरुत्थान
संपूर्ण इतिहास की सबसे बड़ी घटना यीशुमसीह का पुनरुत्थान है। यह मसीही संदेशका केंद है। पुनरुत्थान के बिना कोईमसीही संदेश नहीं है। यह सब यीशु मसीहकी मृत्यु और पुनरुत्थान के आसपासघूमता है।
यीशु मसीह के सुसमाचार में तीन सरल ऐतिहासिक तथ्यशामिल हैं - मानव इतिहास में वास्तव में घटित घटनाएँ औरजो कई विश्वसनीय गवाहों द्वारा सत्यापित है। । कुरिन्थियों में15: 1-4, पौलुस उन विश्वसनीय गवाहों में से एक के रूपमें स्वयं को स्थापित करता है।
हे भाइयों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूँ जो पहिलेसुना चुका हूँ, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया था औरजिस में तुम स्थिर भी हो। उसी के द्वारा तुम्हारा उद्धार भीहोता है, यदि उस सुसमाचार को जो मैं ने तुम्हें सुनाया थास्मरण रखते हो; नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ हुआ।इसी कारण मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी,जो मुझे पहुँची थी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसारयीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। और गाड़। गया;
और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा।
पौलुस हमारे लिए वह सुसमाचार बताता है जिसका प्रचार उसने किया थाः वह सुसमाचार जिस पर विश्वास करना उद्धार केलिए आवश्यक है। सबसे पहले, मसीह के व्यक्ति में केंदित है।दूसरा, यह तीन महान ऐतिहासिक तथ्यों में केंद्रित है जो यीशुमसीह से संबंधित हैंः वह मर गया, गाड़ा गया, और तीसरेदिन फिर से उठा।
उन तथ्यों को अपने हृदय पर छाप लें। पौलुस कहता है, "येऐसे तथ्य हैं जिनके द्वारा आप बचाये जाते हैं वरना आपकावि वास करना व्यर्थ होता।" पौलुस कह रहा है कि, किसीभी समय, यदि वे इन बुनियादी तथ्यों से दूर किसी तरह केधार्मिक सिद्धांतों, कल्पनाओं या व्यक्तिपरक अनुभवों में पड़जाते तो उनका वि वास करना व्यर्थ होता। यही बात आपकेऔर मेरे लिए सच है।
पौलुस इन ऐतिहासिक तथ्यों की दो पु टीकरण देता है। सबसेपहले, वे पुराना नियम के भवि यद्वक्ताओं के लेखों शास्त्रोद्वारा अनुप्रमाणित हैं। दूसरा, वे कई विश्वसनीय गवाहों कीगवाही से प्रमाणित होते हैं।
इन तथ्यों की प्राथमिक पुश्टि पुराना नियम की भवि यवाणीकी पुस्तकें हैं। नया नियम बार-बार इस बात पर जोर देता हैकि पुराना नियम के भवि यद्वक्ता की पुस्तकों को पूरा होनाथा कि उनमें से कोई भी विफल नहीं हो सकता था। इसविशय को संपूर्ण नया नियम में बुना गया है- यीशु केजीवन में और उसके प्रेरितों और प्रारंभिक कलीसिया की बादकी गतिविधियों में। "वह अपने लिए नहीं मरा; वह हमारी मृत्यु मर गया। उसनेहमारी जगह मृत्यु का स्वाद चखा।"
ट रूपन केवल पुनरुत्थान की भवि यवाणी पुराना नियम में कीगई थी, बल्कि स्वयं यीशु ने अपने पुनरुत्थान की स्पसे भवि यवाणी की थी क्योंकि वह पुराने नियम के भवियद्वक्ताओं के लेखों से परिचित था।
पुश्टि का दूसरा स्रोत कई विश्वसनीय गवाहों की गवाही हैजिन्होंने यीशु को देखा और उसके साथ मृतकों में से उसकेपुनःरुत्थान के बाद उसके साथ संगति किया।
इसलिए हमारे पास तीन तथ्य हैंः मसीह की मृत्यु हुई। उसेदफनाया गया। वह पुनः जी उठा। और पुश्टि के लिए हमारे पासदो स्रोत हैंः पुराना नियम के भवि यद्वक्ताओं की पुस्तकें औरबहुत से वि वस्त गवाहों की गवाहियाँ।
मुझे पुनरुत्थान से संबंधित पाँच सहायक विवरण जोड़ने दें जोइसकी वैधता की पुश्टि करते हैं:
- 1. कानूनन एक तथ्य स्थापित करने के लिए जितनी
गवाहों की आव यकता होती है उसकी तुलना में बहुतअधिक संख्या में विश्वसनीय गवाहों द्वारा इसकी पुश्टिकी गई थी।
- 2. इस बात ने उन गवाहों में एक नाटकीय और स्थायी
परिवर्तन उत्पन्न किया, जिसके लिए कोई संतोशजनकवैकल्पिक स्प टीकरण नहीं है।
- 3. उनकी गवाही का पालन करने से इनमें से कई लोगों
को अपनी प्राण देना पड़ा। उनके पास इससे प्राप्त करनेके लिए कुछ भी भौतिक सामग्री नहीं थी।
- 4. इसने संपूर्ण इतिहास में आमूल-चूल परिवर्तन किया
है। इतिहास कभी भी एक जैसा नहीं होगा, और उसपरिवर्तन के लिए कोई संतोोजनक वैकल्पिक स्पटीकरणनहीं है।
- 5. जी उठे मसीह ने मुझ सहित अनगिनत लाखों लोगों
पर स्वयं को व्यक्तिगत रूप से प्रकट करना जारी रखा हैं।
ब्रिटिश सेना में एक सैनिक के रूप में सेवा करते हुए, 1941में एक रात, मुझे यीशु का प्रत्यक्ष, व्यक्तिगत प्रकाशन मिला।मैं सचमुच धार्मिक नहीं था। मैं ऐसा व्यक्ति नहीं था जो कुछविशेशय काल्पनिक या रीति से परे कुछ खोज रहा था। उससमय मेरे मनोविज्ञान में कुछ भी असामान्य नहीं था। लेकिनयीशु ने अपने आप को इतने सच्चे और व्यक्तिगत रूप से मेरेसामने प्रकट किया, उस दिन से लेकर आज तक, मैं कभी भीयह संदेह नहीं कर पाया कि वह जीवित है। क्रूस पर उसकाबलिदान - और बाद में उसके पुनरुत्थान ने मुझे मृत्यु काउपाय प्रदान किया है। और यह आपके लिए भी ऐसा ही करसकता है।
कोड: TL-L062-100-HIN