म एक ऐसे समय में जी रहे हैं जब परमेश्वर के राज्य औरशैतान के राज्य के बीच एक युद्ध पहले से ज्यादा जोरों पर है।मैं समझता हूं कि यह इसलिए है क्योंकि हम मसीह के दुबाराआगमन के समीप है और शैतान के राज्य का नाश होने को आयाहै।

इस अध्याय में हम बढ़ती हुई युद्ध के कई दृष्टिकोणों पर अध्ययन करेंगे जैसे दूतों की मध्यस्थता, आत्मिक बचाव, अस्त्रआदि। मैं अपना परीक्षण शैतान के राज्य की एक बढ़ती हुई कार्यसे शुरू करना चाहूंगा जो आत्मिक लड़ाई का मूल है वह है शैतानका परमेश्वर के प्रति और यीशु मसीह के कलीसिया के प्रति विरोध।। इस विरोध के प्रकृतिकरण को मैं कहना चाहूंगा "मसीह के विरोधपी की आत्मा"। हम देखेंगे कि यह मसीह के विरोधी से भिन्न हैऔर इतिहास के कई मसीह के विरोधियों से भी भिन्न है।

हे लड़को, यह अन्तिम समय है; और जैसा तुम ने सुना है कि मसीह का विरोधी आनेवाला है, उसके अनुसार अब भी बहुत से मसीह-विरोधी उठ खड़े हुए है; इससे हम जानते हैं कि यह अन्तिम समय है। वे निकले तो हम ही में से, पर हम में के थे नहीं, क्योंकि यदि वे हम में से होते, तो हमारे साथ रहते; पर निकल इसलिए गये कि यह प्रकट हो कि वे सब हम मे के नहीं हैं। परन्तु तुम्हारा तो उस पवित्र से अभिषेक हुआ है, और तुम सब कुछ जानते हो। मैं ने तुम्हें इसलिए नहीं लिखा कि तुम सत्य को नहीं जानते, पर इसलिए कि उसे जानते हो, और इसलिए कि कोई झूठ, सत्य की ओर से नहीं। झूठा कौन है? केवल वह जो यीशु के मसीह होने से इनकार करता है; और मसीह का विरोधी वही है, जो पिता और पुत्र का इनकार करता है। जो कोई पुत्र का इन्कार करता है उसके पास पिता भी नहीं: जो पुत्र को मान लेता है, उसके पास पिता भी है।

जैसे हम इस युग के अंत के निकट आते है, इस मसीह विरोधी आत्मा का क्रिया तीव्र होता जाएगा।

मैं बताना चाहूंगा ‘मसीह के विरोधी’ का यथार्थ अभिप्राय क्या है। मसीही (Christ) वाक्य ग्रीक के किस्तो (Christo) नामक शब्द से लिया गया, और जो इब्रानियों के 'माशीपाक' शब्द के सदृश है जिससे हमें मसीहा (Mashiah) मिलता है। इसलिए जब हम ‘मसीह का विरोधी' (antichrist) कहते हैं तो इसका अर्थ है मसीह-विरोध ीि (anti-Mashiah)।

विरोधी (anti) एक ग्रीक उपसर्ग है। इसके दो अर्थ होते हैं और दोनों ही इसके लिए लागू होते है। सबसे पहला, इसका अर्थ है “विपरीत”। तो पहला पडाव है मसीह के विपरीत। दूसरा अर्थ है “इसके बदले में”। इसका उद्देश्य यह है कि एक झूठे मसीहा को सच्चे मसीहा के बदले में स्थापित करना। तो यह पूरी कार्यवाही दो पहलू में है। जब आप यह जानने लगेंगे तो आप देखेंगे कि मसीह के विरोधी की आत्मा सारे प्रदर्शित कलीसियाओं पर अपना प्रभाव डाले हुए हैं।

मेरे कुछ मित्र है जो किसी पुराने सुसमाचार प्रचार करने वाली कलीसिया से जुड़े हैं। उन्होंने मुझ से कहा “हमारी कलीसिया में आप बुद्ध के बारे में बात कर सकतें हैं, आप सोक्रेटस के बारे में बात कर सकते हैं और इस से कोई परेशान नहीं होते। परन्तु अगर तुम यीशु के बारे में बात करोगे तो सब परेशान हो जाएंगे।” यही मसीह के विरोधी की आत्मा है। उसका अन्तिम उद्देश्य है कि सच्चे मसीहा के बदले में झूठे मसीहा को पेश करें।

यूहन्ना के उपदेश में आगे वह कहता है, जरा हम पढ़े :

‘‘परमेश्वर का आत्मा तुम इसी रीति से पहचान सकते हो कि जो कोई आत्मा मान लेती है कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया है वह परमेश्वर की ओर से है। और जो कोई आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्वर की ओर से नहीं, और वही तो मसीह के विरोधी की आत्मा है; जिस की चर्चा तुम सुन चुके हो कि वह आनेवाला है; और अब भी जगत में है।” (यूहन्ना ४:२-३)।

अगर हम इस पद को और पहले के आयत को देखे तो हमे मसीह के विरोधी के तीन प्रकार देखने को मिलते है। पहला, वहां पर बहुत से मसीह के विरोधी है। मानव इतिहास में कई ‘मसीह के

दूसरा, एक मसीह का विरोधी एक विशेष व्यक्ति। यही अन्तिम प्रकटीकरण है, आखिरी उत्पाद ‘मसीह के विरोधी’ के आत्मा की, और यह अब तक मानव इतिहास में प्रकाशित नहीं हुई है। मैं यह विश्वास करता हूं कि उसकी परछाई हमारे क्रमों पर पड़ गयी है, परन्तु हमने उसे नहीं देखा। इस युग के अन्त में, पवित्र शास्त्र यह स्पष्ट रूप से कहता है कि एक अन्तिम श्रेष्ठ दुष्ट, श्रेष्ठ सामर्थी राजा और जो मानव जाति पर कुछ समयों के लिए अपनी हुकूमत चलायेगा वह होगा मसीह का विरोधी ।

मसीह के विरोधी (antichrist) के आत्मा का तीसरा रूपः मसीह के विरोधी की आत्मा ही वह आत्मा है जो हर मसीह विरोध गी को नियन्त्रित करती हैं, जैसे जैसे हम अन्त के युग में पहुंचते हैं वैसे-वैसे मसीह के विरोधी की आत्मा और जोरों से कार्य करेगा और कई ज्यादा हम आत्मिक लड़ाई में शामिल होते जायेंगे।यूहन्ना ने ‘मसीह के विरोधी की आत्मा’ (Spirit of antichrist) को पहचानने के लिए चार चिन्ह दिये हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है। सबसे पहला, यह आत्मा परमेश्वर के जनों से मेल जोल करते हुए अपने कार्य को शुरू करती है (यूहन्ना २:१६)।।

“वे निकले तो हम ही में से, पर हम में के थे नहीं; क्योंकि यदि हम में के होते, तो हमारे साथ रहते, पर निकल इसलिए गए कि यह प्रगट हो कि वे सब हम में से नहीं है”

यह ‘मसीह के विरोधी’ की आत्मा की शुरुआत किसी न किसी तरीके से परमेश्वर के लोगों से सम्मिलित होकर ही करती है। परन्तु यथार्थ में वह वहां नहीं होता और कुछ समय बाद वह अपने आपको प्रकट करता है।

दूसरा चिन्ह इस आत्मा का यह है कि वह यीशु को मसीह के रूप में अस्वीकार करेगा। जैसे हम देखते हैंः यूहन्ना २ः२२ :

“झूठा कौन है। केवल वह जो यीशु के मसीह होने

और फिर यूहन्ना तीसरे चिन्ह को बताते हैः

“मसीह का विरोध गी वही है जो पिता का और पुत्र का इन्कार करता है।

” ध्यान दीजिएः मसीह के विरोधी की आत्मा परमेश्वर का विरोध करता है। यथार्थ में वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व होने का दावा करेगा। जिस बात से मसीह के विरोधी की आत्मा अस्वीकार करती है। वह है ईश्शत्व में पिता और पुत्र के सम्बन्ध का।

यूहन्ना ४ में देखें इस आत्मा का चौथा चिन्ह मानने से इन्कार करता है कि मसीहा आ चुका है कि वह आने वाला है और इस बात को स्वीकार नहीं आ चुका है।

एक स्पष्ट उदाहरण

अब मैं मसीह विरोधी आत्मा का एक एतिहासिक - और विवादग्रस्तउदाहरण को देखना चाहता हूँ। किसी को ठेस पहुँचाना या किसी भी धर्मका धावा करना मेरी इच्छा नही है। मैं सिर्फ सत्य को सामने रखना चाहताहूँ।

मसीह विरोधी आत्मा का एक मुख्य प्रकटीकरण है, इस्लाममुहम्मद का धर्म। सितम्बर ११, २००१ के घटनाओं के बाद, मैंसमझता हूँ कि मसीही लोगों को इस्लाम के बारे में अच्छी जानकारीहोना अवश्य है।

सातवीं शताब्दी में, मुहम्मद अरबी प्रायद्वीप में ऊपर उठा। उसनेभविष्यवक्ता होने का और महादूत द्वारा धर्म का प्रकाशन पाने का दावाकिए। यही धर्म इस्लाम बना। इसने यह भी दावा किया कि इस्लाम हीपुराने और नए नियम का पूर्ति है। इसने कहा कि मसीही लोग औरसुसमाचारों ने सत्य को विकृत कर दिया, जिसके कारण वह उसकाप्रत्यावर्तन कर रहा था। वही मुहम्मद का मूल दावा था। उसने सोचा थाकि मूर्तिपूजा का उपेक्षित करने से और मसीही लोगों के दावे को नमानने के कारण, यहूदी लोग उसके पीछे चलेंगे। और जब उन्होंनेउसका पीछा नहीं चला, तब वह उनके विरुद्ध हुआ और उनकाउत्पी ड़क बना।

यह एक दुर्भाग्य की बात है कि पश्चिम के मसीही लोग इस्लाम कोइतना कम समझा हैं और कम अनुमान किया हैं। शताब्दियों सेंइस्लामी देशों में, मसीही लोग और यहूदियों को "डिम्मी" बुलाया जाताहै, जिसका अर्थ है दूसरे श्रेणी का लोग। यह सच है कि हिट्लर काविध्वंश जैसा भयानक कोई काम इस्लाम ने आज तक नहीं किया है,लेकिन १३ शताब्दियों से वह मसीही एवं यहूदी लोगों का छिपाव औरअपमान करते आया है।

मसीह विरोधी आत्मा का लगभग सारे चिन्ह इस्लाम में है। पुरानेऔर नए नियम के संबन्द में ही यह शुरु हुआ। परमेश्वर के प्रकटीकरणका क्रिय होने का दावा किया। लेकिन क्रूस पर यीशु कि प्रायचितकरने वाले मृत्यु जैसे मसीही विश्वास के कुछ मूल सिद्धान्त को ग्रहणनहीं करता। मुहम्मद ने सिखाया कि यीशु की मृत्यु नहीं हुई, बल्कि एकदेवदूत ने आकर, मृत्यु से पहले यीशु को उठाकर ले चला। मृत्यु नहोने के कारण, प्रायश्चित नहीं है, और प्रायश्चित न होने के कारण,क्षमा नही है। किसी भी मुसलमान को, किसी भी समय पर पापों काक्षमा का निश्चय नहीं है।

दूसरी बात यह है कि इस्लाम इस बात को साफ इनकार करता है कियीशु परमेश्वर का पुत्र है। आप मुसलमानों से यीशु को भविष्यवक्ता केरूप में पेश कर सकते है, वे ध्यान देंगे। असल में, कुरान यीशु कोभविष्यवक्ता मानता है - मुक्तिदाता और मसीहा भी मानता है। लेकिनजब आप कहते है कि वह परमेश्वर के पुत्र है, उनसे अत्यधिक कड़वाविरोध निकलता है। यरूशलेम के प्रसिद्ध मसजिद, डोम आफ़ द राक- जो सुलेमान के मंदिर के जगह में बना है - इसके बाहर के अभिलेकमें दो बार लिखा है कि "खुद्रा को बेटे का जरूरत नहीं है।"

चाहते है तो मेरे मित्र जिम क्राफ़ट का पुस्तक दी मुस्लिम मास्करेड़पढिए। जिम ने इस विश्य पर बहुत अन्वेषण किया है और इस पुस्तक मेंकुरान से बहुत वाक्यों को लेकर, वह अपने विचारों को सिद्ध करता है।

वह व्यक्ति

मसीह-विरोधी के आत्मा का अन्तिम प्रकटीकरण होगा स्वयं मसीह-विरोधी। मैं मानता हूँ कि यह भविष्य में ही होगा। मैं कुछ पवित्रशास्त्र के पदों को दिखाना चाहूँगा ताकि आप शैतान की योजना से अनजान न रहें।

२ थिस्सलुनीकियों २ में, पौलुस मसीह के विरोधी की बाल्याकृति, प्रकाशन और प्रकटीकरण के बारे में बताते है। वे मसीह के पुनः आगमन की तैयारी के विषय में भी कहते हैं यह बातें एक दूसरे से मिले हुए है क्योंकि शैतान का अन्तिम कार्य जो प्रभु के पुनः आगमन से पहले होगा वह मसीह के विराधी को प्रकाशित करना। पौलुस कहता है कि, यह भी यथार्थ है कि अपने पुनः आगमन के ज्योति से प्रभु ‘मसीह के विरोधी’ को नष्ट कर देगा। २ थिस्सलुनीकियों २:१-२ मे हम पढ़ते हैः

“ हे भाइयो, हम अपने प्रभु यीशु मसीह के आने और उसके पास अपने इकट्ठे होने के विषय में तुम से विनती करते हैं कि किसी आत्मा या वचन या पत्री के द्वारा जो कि मानों हमारी ओर से हो, यह समझकर कि प्रभु का दिन आ पहुंचा है, तुम्हारा मन अचानक अस्थिर न हो जाय, और न तुम घबराओ।”

शब्द ‘आनें’ (Coming) को ग्रीक में ‘पैरोशिया’ (Parousi) कहते हैं। जो साधारणतः यीशु के पुनः आगमन के बारे में प्रयोग किया जाता है।

पौलुस लिखते हैं ‘किसी आत्मा या वचन या पत्री के द्वारा जो कि मानों हमारी ओर से हो, यह समझकर कि प्रभु का दिन आ पहुंचा है, तुम्हारा मन अचानक अस्थिर न हो जाय, और न तुम घबराओं’ क्योंकि वह जानता था कि कई मसीही यीशु के पुनः आगमन की कई भविष्यवाणियों पर विश्वास करेंगे। मैंने भी कई भविष्यवाणी अपने सेवकाई में सुनी है और मैं हैरान हूं उन मसीही जनों पर जो उन बातों पर टिक गये हैं।

पौलुस जारी रखता हैः

“किसी आत्मा या वचन या पत्री के द्वारा जो कि मानो हमारी ओर से हो यह समझकर कि प्रभु का दिन आ पहुंचा है, तुम्हारा मन अचानक अस्थिर न हो जाय; और न तुम घबराओ। किसी रीति से किसी के धोखे में न आना, क्योंकि वह दिन न आएगा, जब तक धर्म का त्याग न हो ले और वह पाप का पुरुष अर्थात विनाश का पुत्र प्रगट न हो” (२ थिस्सलुनीकियों २ः२-३)।

(२ थिस्सलुनीकियों २ः२-३)। ‘धर्म का त्याग’ (fallen away) का ग्रीक अनुवाद अपोसटिका (apostica) है जिसका अर्थ है धर्म त्याग (apostasy)। एक प्रकाशित सत्य को जानते हुए भी त्याग करना।

इस आयत में ‘मसीह के विरोधी’ के दो शीर्षक को बताया गया है। पहला, वह “पाप का पुरुष” है पुरुष जो व्यवस्थाहीन है। मनुष्य का परमेश्वर से विद्रोह और उसके व्यवस्था का त्याग करने के पीछे सर्वोच्च कारण ‘मसीह के विरोधी’ का है। उसे ‘विनाश का पुत्र’ भी कहा गया है, वह जो एक खोए हुए अनन्तता की ओर जा रहा है। यहूदी इस्करियोति ही वह दूसरा व्यक्ति है जिसे नये नियम में ‘विनाश का पुत्र’ कहा गया है। वह एक झूठा प्रेरित था।

हमने देखा तीन अलग नाम एक ही व्यक्ति काः ‘मसीह का विरोधी’, ‘व्यवस्थाहीन पुरुष’ और ‘विनाश का पुत्र’।

और मैंने एक पशु को समुद्र में से निकालते हुए देखा, जिस के दस सींग और सात सिर थे; और उसके सींगो पर दस राजमुकुट और उसके सिरों पर निन्दा के नाम लिखे हुए थे। और जो पशु मैंने देखा, वह चीते की नाई था; और उसके पांव भालू के से और मुंह सिंह का सा था; और उस अजगर ने अपनी सामर्थ और अपना सिंहासन और बड़ा अधिकार उसे दे दिया। और मैंने उसके सिरों में से एक पर ऐसा भारी घाव लगा देखा, मानो वह मरने पर है; फिर उसका प्राणघातक घाव अच्छा हो गया और सारी पृथ्वी के लोग उस पशु के पीछे अचम्भा करते हुए चले। और उन्होंने अजगर की पूजा की, क्योंकि उसने पशु को अपना अधिकार दे दिया था और यह कहकर पशु की पूजा की कि इस पशु के समान कौन है?

यहां हम चौथे शीर्षक को देखते हैंः “पशु” एक व्यक्ति जो उठ खड़ा होगा और जिसे शैतान (अजगर) अपना अधिकार दे देगा। शैतान अपना अधिकार उसे क्यों देगा? क्योंकि इससे उस व्यक्ति को सारे मानव जाति पर अधिकार प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। और मानव जाति को वह कार्य करने में उकसायेगा जो शैतान हरदम चाहता हैः वह है उसकी आराधना करना। यही उसका लक्ष्य है। वह बड़े धैर्यपूर्वक कई शताब्दी से इस कार्य को कर रहा है और वह अपनी उपलब्धि के बहुत करीब है।

ध्यान दें उसके सिर में जो ‘भारी घाव’ था वह अच्छा हो गया। यह एक झूठा पुनरुथान है। मुझे नहीं पता कि इस व्यक्ति को मार दिया जायेगा परन्तु वह मृत होगा और वह फिर जीवित होगा।

देखा और उसे खोलने के योग्य कोई नहीं पाया गया। इसलिए यूहन्ना रो रहा था।

“तब उन प्राचीनों में से एक ने मुझे कहा, मत रो, देख यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उस की सातों मुहरें तोड़ने के लिए जयवन्त हुआ है। और मैंने उस सिंहासन और चारों प्राणियों और उन प्राचीनों के बीच में, मानों एक वध किया हुआ मेम्ना खड़ा देखाः उसके सात सींग और सात आंखे थी; ये परमेश्वर की सातों आत्माएं हैं, जो सारी पृथ्वी पर भेजी गई हैं (प्रकाशितवाक्य ५ः५-६)।

यूहन्ना एक सिंह की अपेक्षा कर रहा था, परन्तु वह सिंह एक मेम्ना था। यह एक विचारपूर्वक विपरीत बातें है। परमेश्वर द्वारा नियुक्त किये गये राजाओं में किसी को पशु की प्रकृति नहीं थी। उसे एक मेम्ने की प्रकृति थी। वह ऊंचा उठाया गया क्योंकि उसने अपने जीवन को दे दिया। वह दीनता व नम्रता के मार्ग पर चला, क्योंकि उसने अपने पकड़ने या सताने वालों को रोका नहीं। मैं विश्वास करता हूं कि आज के दिनों की कलीसिया इसी प्रकृति को दर्शायेगी। मैं नहीं समझता कि यह आसान होगा।

हमने देखा कि लोग उस पशु की आराधना करेंगे। और सब यह सहमत हो गये कि उस पशु से युद्ध करना व्यर्थ है। मैं निश्चित नहीं हूं कि वह क्या परिस्थितियां होगी जिसने “सारी पृथ्वी” को यह सोचने में विवश कर दिया कि युद्ध करना व्यर्थ होगा। जब हम आज के तकनीकी और हथियारों के युग को देखते हैं और जिस में हम जी रहें हैं, यह मानना आसान हो जाता है। यह चित्र करीबी दिनों में देखा जा सकता है।

प्रकाशितवाक्य १३:६-७ में हम देखते हैं कि मसीह-विरोधी अपना कार्य आरम्भ करता है।

“और उसने परमेश्वर की निन्दा करने के लिये मुंह खोला कि उसके नाम और उसके तम्बू अर्थात स्वर्ग के रहनेवालों की निन्दा करे। और उसे यह अधिकार दिया

वह परमेश्वर को एक खुली चुनौती देने वाला है। वह एक रहस्यमय शत्रु नहीं है; वह अपनी मुट्ठी को परम परमेश्वर के मुख की ओर घुमाता है। और कौन उसे यह करने की अनुमति देता है कि वह पवित्र लोगों से युद्ध कर उन पर विजय प्राप्त करे? मैं समझता हूं कि वह परमेश्वर ही है। यह एक बहुत गम्भीर सोच है। यह हमें भूलना नहीं चाहिए कि मसीही होना एक आसान विजय नहीं।

आयें और देखें आयत ८ मेंः

“और पृथ्वी के वे सब रहनेवाले जिन के नाम उस मेम्ने की जीवन की पुस्तक में नहीं लिखे गए जो जगत की उत्पत्ति के समय घात हुआ है वे उस पशु की पूजा करेंगे।

कितना नाटकीय विवरण है। पूरी मानव जाति उसकी आराधना करेंगे सिवाये उनके जिन्हें परमेश्वर ने स्वयं के लिए चुन लिया।

हमारे युद्ध की योजना और स्पष्ट हो जाएगी। फिर से देखिये २ थिस्सलुनीकियों २ः३ को

“किसी रीति से किसी के धोखे में न आना क्योंकि वह दिन न आएगा जब तक धर्म का त्याग न हो ले, और वह पाप का पुरुष अर्थात विनाश का पुत्र प्रगट न हो।”

मैं समझता हूं कि यही वह ‘धर्म का त्याग’ है जो संसार में आज हो रहा है। शताब्दियों से जो कलीसिया के दुष्ट अगुवे थे उन्होंने खुले तौर से मसीही विश्वास के मूल मन्त्र से इन्कार नहीं किया। यथार्थ रूप में वही सत्य उनके अधिकार की आवश्यकता थी। परन्तु बीसवीं शताब्दी में ऐसे अगुवे देखे गये जो मसीही विश्वास के मूल सत्य को अस्वीकार कर रहे हैं, मूल सत्य जैसे : यीशु का अवतार होना, उसके कुंवारी से जन्म लेना, उसकी प्रायश्चित दिलाने वाली मृत्यु, उसके देह का पुनरूत्थान होना और उसका दुसरा आगमन। मैं नहीं समझता कि यह पहले किसी शताब्दी में हुआ। मैं यह मानता हूं कि हमारा सामना धर्म त्याग से हो चुका है हमेशा ध् यान में रखना है कि कलीसिया त्रुटियों से बचने का एक परकोटा है।

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