‘मने यह देखा कि एक मसीही होने पर भी हम साहित्य के अनकहे बौछारों से अनजान रहते हैं और इसे मानवतावाद कहा जाता है। यह मनुष्य को नैतिकता और आत्मिक सत्य की मध् यस्थता करने के लिए स्थापित करती है और परमेश्वर व शैतानी शक्तियों के बीच पुनर्मेल का दावा किया गया है, जिसमें स्वयं शैतान या गिराये गये दूत जन या दानव या जो कोई भी जिसका परमेश्वर से शत्रुता है। किसी भी सृष्टि की गई प्राणी को कोई पूर्ण या अंत न होने वाला न्याय नहीं दिया गया है।

यहां पर मेल-मिलाप को महत्व दिया गया और यह सिद्धांत अच्छे मसीही या भोले भाले मसीहियों के लिए एक शक्त सूचना है। फिर भी यह पवित्रशास्त्र को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं। कुलुस्सियों १६-२० में साधारणतः यह दर्शाया गया है किः

“क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उसमें सारी परिपूर्णता वास करे। और उसके क्रूस पर बहे हुए लोहू के द्वारा मेल मिलाप करके, सब वस्तुओं का उसी के द्वारा अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर,

इस सिद्धात की महत्वता इस आयत के वाक्य पर है, “सब वस्तुओं का उसी के द्वारा अपने साथ मेल”। हमने यह देखा कि जहां तक “सब वस्तुएं” को तुरन्त अगले ही पद में बताया गया है “चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग में की।” जो मेल मिलाप के बारे में यहां कहता है वह है ‘सिर्फ उन चीजों तक फैली है जो धरती या स्वर्ग में है।’

अग्नि की झील सुलह की सीमा के बाहर है

इस शिक्षा का महत्व तब पता चलता है जब हम परमेश्वर के आखिरी न्याय के बारे में पढ़ते हैं जो प्रकाशितवाक्य २०:७-१५ में है। आयत ११ में हमें कहा गया है कि “पृथ्वी और आकाश भाग गए।” फिर आयत १५ में हमें बताया गया कि “जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की झील में डाला गया।” इसका यह मतलब हुआ कि पृथ्वी और आकाश के भाग जाने के बाद भी आग की झील अपने स्थान में बनी रही। जिसका यह अर्थ होता है कि आग की झील न ही धरती में और न ही स्वर्ग में है, और इसीलिए कुलुस्सियों १:२० में इसे मेल मिलाप के विषय में सम्मिलित नहीं की गई। तो फिर कुलुस्सियों १:२० के कथन कोई दावा नहीं करती उन लोगों के बारे में जिन्हें इस आग की झील में भेजा जाएगा और शायद ही वे परमेश्वर से मेल मिलाप कर पायेंगे। दूसरे शब्दों में आग की झील मेल मिलाप के बाहर स्थित हैं।

“अनन्तता” कितना लंबा है?

दूसरा तर्क जो अन्तिम या समाप्त न होने वाली दण्ड के लिये है वह आधारित है यूनान की एक विशेषण से जो है, ‘ऐनियोस’ जिसका अनुवाद है “अनन्तता” या “नित्यता”। यह दावा किया जाता है कि यह विशेषण यूनान की ही एक संज्ञा से ली गई है जो ‘ऐओन’ कहलाता है। जिसका अर्थ है “किसी युग का या उस युग से और बढ़ता चला जाना”। दूसरे शब्दों में जो ऐओनोस है वह अलग-अलग युगों में नहीं बढ़ता है परन्तु यह एक ही युग में बढ़ता है।

इसकी व्याख्या के उदाहरण के लिए स्वयं यीशु के वचन को देखते हैंः “और यह अनन्त दण्ड भोगेगें परन्तु धर्मी अनन्त जीवन 191 अन्त तक धीरज धरें में प्रवेश करेंगे” (मत्ती २५:४६)। इसका तात्पर्य है कि ‘अनन्त दण्ड’ का अर्थ यथार्थ की परीक्षा जो एक युग में समाप्त होगी। अगर यह इसका यथार्थ है तो बुद्धि शायद यह कहे कि “अनन्त जीवन” भी उसी तरह अनुवाद किया जाये। क्या किसी को अनुमान था कि क्या यही यीशु का तात्पर्य था?

दूसरी तरफ, यह आयत एक प्रमाण है कि ऐओनोस नामक विशेषण यह नहीं मानता कि “जो एक युग में चलता जाता है” परन्तु “युगानुयुग” या “सारी युगों तक” है। यह अर्थ बदलता नहीं है भले यह विशेषण जीवन के लिए कहा गया या ‘दण्ड’ के लिए हो।

यह सिद्ध होता है और यूनानी नये नियम में पाये जाने वाली वाक शैली से जो हैः पैस (टोउस) रैओवास टोन रैओवोन-जो है “युगों से युगों तक”। यह शब्द यूनानी नये नियम में करीब बीस बार पाया जाता है और इसका साधारण अनुवाद होगा “युगानुयुग”। यूनानी भाषा में युगों तक चलने वाली वाक शैली को इससे बेहतर नहीं बताया जा सकता।

यही शैली प्रकाशितवाक्य २०:१० में भी प्रयोग किया गया है जहां शैतान के विषय में कहता है एक ‘पशु’ और ‘झूठा भविष्यवक्ता’, “वे रात दिन युगानुयुग पीड़ा में तड़पते रहेंगे।” इससे अच्छे तरीके से इस दण्ड को नहीं दर्शाया जा सकता जो पूर्ण और स्पष्ट रूप से अन्तहीन है।

मेल मिलाप का मूल आधार

जो कहते हैं कि शैतान का परमेश्वर से मेल मिलाप हो जायेगा वे यथार्थ में वचन के आधार के जो मेल मिलाप है उसे नहीं समझते। पतरस हमसे कहता हैः

“प्रभु अपने प्रतिज्ञा के विषय में ध् गीरज धरता है और नहीं चाहता कि कोई नाश हो; वरन यह कि सबको मन फिराव का अवसर मिले” (२ पतरस ३ः६)।

ध्यान दें धीरज 'तुम्हारे लिये है'—- इसका अर्थ 'सारी मानवता के लिए'। यह भी ध्यान दें कि एक स्थिति जो स्थिर है और जिस के द्वारा ही परमेश्वर की करूणा और मेल मिलाप को पा सकते है वह हैः पश्चाताप। पश्चाताप दर्शाता है हमारे गलत कार्यों को स्वीकार करना और गलत कार्यों से मुंह मोड़ना और आज्ञाकारिता व खुलेपन से परमेश्वर के आगे समर्पण करना। जहां पश्चाताप नहीं है, वहां मेल मिलाप नहीं हो सकता।

वह मुमकिन है कि किसी सृष्टि की गई प्राणी जो विद्रोह से इतना अडिग है कि उसके बदलने की कोई उम्मीद न हों। ऐसे परिस्थिति में पश्चाताप मुमकिन नहीं है। इब्रानियों १२:१७ में हमें एसाव के बारे में बताया गया कि “बाद में जब उसने आशीष पानी चाही तो अयोग्य गिना गया और आंसू बहा बहाकर खोजने पर भी मन फिराव का अवसर उसे न मिला।” और स्पष्ट रूप से “उसे अपनी सोच को बदलने के लिए कोई मार्ग नहीं मिला।” जो पहिलौठे के विषय में देखा जाये तो एसाव ने एक अटल निर्णय लिया। इसीलिए जो आशीष उसके हक की थी उसे पा न सका।

यही बात शैतान और उसके दूतों के लिये भी लागू होती है। उनके सबसे पहले विद्रोह जो परमेश्वर के विरूद्ध था, वे अपने पूरे तेजस्व और अनन्तता के ज्ञान के बावजूद एक अटल और न बदलने वाली प्रतिज्ञा थी। उनकी यह इच्छा हमेशा के लिए अनन्तता में बन गयी है कि वे परमेश्वर के विरूद्ध खड़े रहकर उससे दुश्मनी करे। शैतान पश्चाताप या मन फिराव के योग्य नहीं है इसलिए उसके मेल मिलाप की कोई संभावना नहीं है।

मसीह मनुष्यों के बदले में स्थापित है, न की दूतों के

पवित्रशास्त्र यह स्पष्ट रूप से बताता है कि मसीह की प्रायश्चित भरा बलिदान सिर्फ मानवता के बदले में था। यीशु ‘परमेश्वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है” (यूहन्ना १:२६)। वह “हमारे पापों का प्रायश्चित है और केवल हमारे ही नहीं, वरन सारे जगत के पापों का भी” (यूहन्ना २ः२)। इन दोनों आयतों में ‘जगत’ का यूनानी अनुवाद है ‘कोसमोस’ ।

नये नियम के तीन पदों को इस बात को निश्चित करने के लिये लिया जा सकता है। रोमियों ५:१२ में पौलुस कहता है कि “एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया।” वह ‘एक मनुष्य’ कोई और नहीं बल्कि आदम था। पाप की शुरुआत पहले ही शैतान और उसके दूतों के द्वारा स्वर्ग में हो चुका था, परन्तु वह जगत से बाहर था।

पतरस नूह के दिनों में परमेश्वर के न्याय जो मानव जाति के लिये थे उसे बताते है कि परमेश्वर ने, “संसार को भी न छोडा वरन नूह को बचा लिया” (२ पतरस २ः५) । और फिर “जगत जल में डूबकर नाश हो गया” (२ पतरस ३:६)। दोनों ही आयतों में “जगत” इस संसार की मानवता को दर्शाती है। शैतान और गिराये गये दूत इसमें नहीं गिने गये हैं।

और इसे जारी रखते हुए देखें कि यीशु ने “जगत” के पापों को प्रायश्चित करने के लिए क्रूस पर जान दी, उसने यह प्रायश्चित सारे मानव जाति के लिए की जो इस संसार में है, परन्तु शैतान और उसके दूतों के लिए नहीं। इब्रानियों में इसका एक प्रगटीकरण को दर्शाया हैः “इसलिये जबकि लड़के मांस और लोहू के भागी है तो वह आप भी उनके समान उनका सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात शैतान को निकम्मा कर दे। और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फंसे थे, उन्हें छुड़ा लें। क्योंकि वह तो स्वर्गदूतों को नहीं वरन इब्राहिम के वंश को संभालता है” एक गहरी अध्ययन हमें दिखायेगी कि यह यूनानी शब्द 'कोसमोस' जो पूरे नये नियम में है, वह विशिष्ट रूप से इस जग और उस पर रहने वाले मानव के लिए कहा गया। (इब्रानियों २:१४-१६) । अपने शारीरिक प्रकृति के कारण यीशु अब्राहम का वंशज हुआ और इसीलिए वह आदम का वंशज हुआ वह 'आखिरी आदम' था (१Corinthians 15:45). He became a propitiation on the cross for all Adam's descendants. He did not take on the nature of angels or stand in their place. Therefore, no spiritual judgment was ever used as the basis for the forgiveness of angels. In reality, the purpose of Jesus' sacrifice on the cross was not to bring salvation to Satan but to "make Satan useless" (Hebrews 2:14). What does this make clear?

इसी कारण से अपनी सारी महिमा में वापिस आकर मसीह अपने आप को प्रगट करेगा और उसके बाई ओर खड़े ‘बकरियों’ से कहता हैः “हे श्रापित लोगों, मेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई है” (मत्ती २५:४१)। इस अनन्त आग को ‘गोहेना’ भी कहा जाता है या फिर आग की झील - जो “शैतान और दूतों के लिये बनाया गया है।” यह स्पष्टतः, अग्नि और अनन्त स्थान है। यह दण्ड का स्थान मानव जाति के लिए नहीं बना है। अगर वे अपना मन फिराये और परमेश्वर के आगे समर्पण करें तो परमेश्वर उन्हें क्षमा करेगा। उनके लिये एक मार्ग है—अगर वे इसे स्वीकार करते हैं। परन्तु शैतान और उसके दूतों के लिए कोई मार्ग नहीं है।

वे परमेश्वर के शत्रु है जो शैतान की वकालत करते हैं।

इन आत्मिक मंडलों में कोई तटस्थता नहीं हैं, यीशु ने कहा “जो मेरे साथ नहीं वो मेरे विरोध में है” (मत्ती १२:३०)। दो ही प्रकार के स्वभाव हो सकते हैंः ‘परमेश्वर पर समर्पित होना या परमेश्वर के विरूद्ध कार्य करना। वे मनुष्य जिन्होंने मन फिराकर परमेश्वर के आगे समर्पित किया है वे उस आग की झील में जाने से बच जाएंगे। बाकी सब जिन्होंने अपने आप को समर्पित नहीं किया वे परमेश्वर के विरूद्ध में है। वह अपने आपको शैतान और उसके दूतों के साथ मिलाप करते हैं। इस मिलाप के कारण वे भी उसी मंजिल पर पहुंचते हैं जो है—-आग की झील। जो कोई भी इसमें एक बार प्रवेश हो गया हो तो वह लौट के नहीं जा सकता, भले वह दूत हो या मनुष्य। यहै “हमेशा-हमेशा के लिए है।”

अपने आपको मसीही कहने वालों के लिए “मेल मिलाप” के सिद्धांत में एक चेतावनी दी गयी है। पवित्र शास्त्र में परमेश्वर स्पष्ट रूप से दो बातों को बताता है। पहला परमेश्वर स्पष्ट न्याय करता है वह पक्षपात नहीं करता। दूसरा परमेश्वर ने शैतान और उसके दूतों को अनन्त आग का दण्ड सुनाया है। दूसरे कथन को अस्वीकार करे तो वह अपने आप पहले को भी अस्वीकार करता है।

क्या आपने देखा कितना जरूरी है इस सिद्धांत के खतरों को समझना? जो कोई भी यह मानने से इन्कार करता है कि शैतान अनन्त आग में डाला जायेगा, तो अपने आप वह परमेश्वर के सत्य और न्याय से इन्कार करता है। इस धूर्त धोखे से शैतान आज के अच्छे मसीहियों को परमेश्वर के खिलाफ कार्य करने के लिए उन्हें

क्या यह स्वभाव आपके हृदय में जगह बनाया हुआ है? अगर है तो आपको अपने विचार बदलने होंगे। आपके और शैतान के साथ की संगति को त्याग दें। परमेश्वर के आगे अपने विरोध को नीचे डाल दें। स्वयं को दीन बनायें। अपने आपको परमेश्वर के सत्य और न्याय के लिये सौंप दें। ऐसा करने से आप परमेश्वर के मार्ग अपने जीवन में खोल देते हैं जो उसकी करूणा, अनुग्रह और शान्ति को पुनःस्थापित करती है। दाऊद के इन वाक्यों पर ध्यान देंः

“हे यहोवा, क्या मैं तेरे बैरियों से बैर न रखूं और तेरे विरोधियों से रूठ न जाऊं? हां, मैं उन से पूर्ण बैर रखता हूं, मैं उनको अपना शत्रु समझता हूं। हे ईश्वर मुझे जांचकर जान लें। मुझे परखकर मेरी चिन्ताओं को जान ले। और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर” (भजनसंहिता १३६:२१ -२४)।

दाऊद का यह अंगीकार आपका अंगीकार बन जाये जो शैतान और उसके दूतों के विषय में है। परमेश्वर से कहें कि वह आपके हृदय की जांच करें। हर बुराई को त्याग देवें। अनन्तता के मार्ग को अपना ले। यह उन लोगों के लिये आवश्यक है जो बने रहेंगे।

परमेश्वर के सिक्के के दो पहलू: ‘कृपा’ और ‘कठोरता

इसे इस प्रकार सोचें। यहां पर पवित्रशास्त्र में प्रकृति का बयान किया गया है और साथ ही मनुष्य के साथ जो व्यवहार है। इसका एक सिक्के के रूप में चित्रीकरण करें। सिक्के के दो पहलू है और दोनों के मिलने से सिक्का पूर्ण होता है। यह दो पहलू पौलुस द्वारा प्रस्तुत किया गया हैः “इसलिए परमेश्वर की कृपा और कड़ाई को देख” (रोमियों ११:२२)। यह है उसके दो पहलूः कृपा और कड़ाई। एक तरफ कृपा या अनुग्रह है और दूसरे तरफ उसके क्रोध या न्याय ।

सिक्के के एक पहलू को ही देखने से उसकी अपूर्णता और महत्वहीनता दिखाई देता है। परमेश्वर के बारे में भी इसी प्रकार है। हमेशा उसकी करूणा के बारे में बोलना परन्तु कभी इसकी कड़ाई को नहीं कहना। उसकी करूणा और अनुग्रह को हमेशा बोला जाता है परन्तु उसके क्रोध और न्याय को नहीं—यही है सिक्के के एक ही पहलू को देखना। पवित्रशास्त्र के आधार पर ये अपूर्णता और महत्वहीनता को दर्शाता है। जो इस प्रकार बोलते हैं वे परमेश्वर के प्रति विश्वसनीय नहीं है और मनुष्य के प्रति भी सही नहीं है। ऐसे करने से वे परमेश्वर की प्रतिनिधित्व गलत ढंग से करते हैं और मनुष्यों को भी गलत राह में ले जाते हैं।

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