इस शिक्षापत्र की सामग्री में प्रवेश करने से पहले, यह उपयोगी होगा कि आप बाइबल में बिलाम की कहानी के वर्णन से स्वयं को परिचित कर लें।

  • गिनती 22 और 25 अध्या
  • गिनती 31

पदया हली झलक में बिलाम की कहानी एक भविष्यवक्ता के रूप में दिया गया जो गिनती २२-२४ अध्यायों में है और शायद यह किसी मसीही के आत्मिक लड़ाई में शामिल होने के विषय से अलग लग सकती है। अगर ऐसा होता तो नये नियम के लेखकों ने इसका जिक्र तीन अलग अलग पदों में नहीं किया होता। उन्होंने बिलाम के बारे में तीन अलग पदों में ज्रिक किया हर पद में एक चेतावनी के साथ इसे व्यक्त किया गया है। स्पष्ट रूप से उसके कहानी हमारे लिये एक महत्वपूर्ण सबक सिखलाती है।

बिलाम एक अनोखा और कपट से भरा व्यक्तित्व वाला व्यक्ति था। उसका व्यक्तित्व आलौकिक आत्मिक वरदानों का और भ्रष्ट व्यक्तित्व का एक रहस्यमय मिश्रण था । महत्वपूर्ण रूप से आज इन कई कलीसियों में इस प्रकार के आत्मिक वरदानों और भ्रष्ट व्यक्तित्व का मिश्रित रुप पाया जाता है।

पदया बिलाम की कहानी शुरू होती है जब इस्त्राएलियों ने आखिरकार अरब में डेरा डाला। उनकी उपस्थिति नें बालाक को जो मोआब का राजा था, अत्यन्त डरा दिया। स्पष्ट रूप से वह उन इस्त्राएलियों को देखकर यह समझा कि वे उसके राज्य पर एक संकट है, परन्तु इस्त्राएलियों ने अब तक कुछ भी ऐसा नहीं किया जो उसके डर का कारण बन सके ।

जब उसे लगा कि वह इस्त्राएलियों के साथ एक लड़ाई नहीं लड़ सकता तब बालाक ने उनके विरूद्ध आत्मिक हथियारों का प्रयोग करने का निर्णय लिया। और उसने अपने दूतों को भेंट के साथ भेजा ताकि वह बिलाम को इस्त्राएलियों पर श्राप बोलने के लिये ला सकें। एक भावी कहने वाले (ज्योतिषी या जादू-टोना करने वाला) के नाते बिलाम एक प्रतिष्ठित व्यक्ति था जो सामर्थी रूप से आशीष और श्राप के वचन कहता और जिसके अच्छे और बुरे प्रभाव भी होते थे।

बिलाम मेसोपोतामिया के पतोर नामक स्थान से था। वह एक इस्त्राएली नहीं था फिर भी उसे एक सच्चे परमेश्वर का व्यक्तिगत ज्ञान था। इस कहानी में एक बार बिलाम ने कहा, “मैं अपने परमेश्वर यहोवा” (गिनती २२:१८)। अंग्रेजी में परमेश्वर के लिये ‘लॉर्ड’ (LORD) कहते हैं। और यहां यह वर्णमाला के बड़े अक्षरो में है जो इब्रानी भाषा से अनुवाद किया गया है और जिसका इब्रानी भाषा में यह परमेश्वर के पवित्र नाम को बताता है जैसे यहोवा या याहवे (Yahweh)। बिलाम परमेश्वर के पवित्र नाम को जानता था और उसने उसे “अपना परमेश्वर” कहा।जब बालाक के पहले दूत आये तो परमेश्वर ने बिलाम को उनके साथ जाने से और इस्त्राएल पर शाप देने से मना किया (देखें गिनती २२:१२)।

बिलाम ने आज्ञा मांगी। बालाक की प्रतिक्रिया यह थी कि उसने और प्रतिष्ठित और बड़े दूतों को भेजा और जो अधि ाक प्रतिफल को लेकर गये। इस बार परमेश्वर ने बिलाम को एक शर्त पर जाने की आज्ञा दी : “यदि वे पुरूष तुझे बुलाने आये” (गिनती २२:२०)।

यह कहीं नहीं बताया गया है कि वे लोग फिर से बिलाम के पास उसे बुलाने आयें। फिर भी वह गया और उसकी अनाज्ञाकारिता ने परमेश्वर को क्रोधित किया और परमेश्वर ने उसकी राह में लगभग उसे मार ही दिया था। परन्तु आखिरकार परमेश्वर ने उसे जाने दिया परन्तु एक शर्त रखीः “परन्तु केवल वहीं बात कहना जो मैं तुझसे कहूंगा” (गिनती २२:३५)।

बालाक ने बिलाम का स्वागत बहुत ही अच्छे ढंग से किया और सारी तैयारियां की जिससे वह इस्त्रालियों को शाप दे सकें। परन्तु हर बार परिणाम विपरीत हुआ। एक साथ अगर बिलाम की चार भविष्यवाणियों को देखें तो पायेंगे कि यह परमेश्वर की सुन्दर व सामर्थी प्रकटीकरण है जो पवित्र शास्त्र में इस्त्राएल को आशीष देने के लिए व्यक्त ही गई है।

इस्त्राएल पर श्राप देने की कोशिश को परमेश्वर द्वारा निष्फल करते देख बिलाम ने एक भिन्न तरीका उसके विरूद्ध अपनाया (देखें गिनती ३१:१६)। अगर मोआबी स्त्रियां इस्त्रालियों को मूर्तिपूजन व अधर्म करने के लिए आकर्षित कर सकती हैं तो उन्हें श्राप देने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। परमेश्वर स्वयं उन पर अपना न्याय लायेगा। बिलाम की यह चाल कामयाब हुई और २४००० इस्त्राएली परमेश्वर के न्याय के कारण मर गये (देखें गिनती २५:१-६)।

इन सब में बिलाम की एक विशिष्ट अस्थायित्व दिखाई देती है। एक बार से अधिक वह इस्त्राएल को स्पष्ट रूप से श्राप न देने के लिए रोका गया। एक अलौकिक प्रकटीकरण से उसने चार बार परमेश्वर के उसके जन इस्त्राएल पर आशीष देने को सहमत हुआ और साथ ही साथ उसके शत्रुओं का अन्त भी। परन्तु उसने जिद्दी बनकर बालाक के साथ मेल रखा, जो इस्त्राएल का शत्रू था, और जो इस्त्राएल को नष्ट करना चाहता था। यह उस पर सही बैठता था कि वह भी इस्त्राएल के अन्य शत्रुओं के साथ एक ही न्याय में, मारा जाये। और वह मिद्यानियों के साथ इस्त्राएलियों द्वारा मार दिया गया (देखें गिनती ३१:८) ।

हमें अपने आप से पूछना हैः ऐसी क्या प्रेरणा थी जो इतनी सामर्थी और लाचार करने वाली शक्ति थी जिसने बिलाम को परमेश्वर के प्रकटीकरण के विरूद्ध कार्य करने के लिए विवश कर दिया - और जिसमें उसका अन्त हुआ? नये नियम के दो लेखक इस प्रश्न का उत्तर देते हैं।

कलीसिया में कपटी उपदेशकों के विषय में पतरस कहते हैं:

“और वे सीधे मार्ग को छोड़कर भटक गए हैं, और बओर के पुत्र बिलाम के मार्ग पर हो लिए हैं, जिस ने अधर्म की मजदूरी को प्रिय जाना” (२ पतरस २ः१५)।

इसके जैसे ही यहूदा भी काफी उपदेशकों के लिये कहते हैंः

“उन पर हाय! कि वे कैन की सी चाल चले और मजदूरी के लिये बिलाम की नाई भ्रष्ट हो गए हैंः और कोरह की नाई विरोध करके नाश हुए हैं।”

उत्तर स्पष्ट है। बिलाम धन की लालसा में पड़ गया जिससे उसका अन्त हुआ। इसके लिए उसने अपने आत्मिक वरदानों को भी कुकर्म के लिए लगा दिया। शायद वह मिथ्या प्रशंसा में पड़ गया जो उसे राजा बालाक व उसके दूतों से मिली। धन का प्रेम बहुत करीब है, प्रशंसा और सामर्थ के आग्रह से। यह सब बुरी लालसायें एक ही मिट्टी में बढ़ती हैं जो कहलाती हैंः घमण्ड। बिलाम से सबक

बिलाम की गलतियों से सीखें

बिलाम की कहानी से हमें तीन सबक सिखने को मिलता हैः

पहला, परम परमेश्वर ने यहूदियों को जो उसके जन है हमेशा के लिए स्थापित करने की अटल प्रतिज्ञा की है। ऐसी कोई शक्ति न ब्रह्माण्ड में, न मानव या शैतान में है जो इस प्रतिज्ञा को तोड़ सकें। यहूदी अनेकों बार परमेश्वर से अविश्वसनीय रहें और उससे उन पर कठिन न्याय भी आया परन्तु उनकी अविश्वसनीयता परमेश्वर की विश्वसनीयता को मिटा नहीं सकती।

इस कार्य का आरम्भ परमेश्वर से होता है न की मनुष्यों से। यहूदियों ने परमेश्वर को नहीं चुना परन्तु परमेश्वर ने यहूदियों को चुना। एक नवयुवक मेरा मित्र है जो पहले मुसलमान हुआ करता था जो आलौकिक रूप से मसीह में आया है - आईए उसे 'अली' कहें। उसके मन फिराव के बाद अली यहूदियो के विरूद्ध परमेश्वर से कहने लगा। आखिरकार परमेश्वर ने उसे जवाब दिया, “अली, तुम्हारी समस्या यहूदी नहीं है। तुम्हारी समस्या मेरे साथ है। मैंने ही उन्हें चुना है।” वह नवयुवक आज मुसलमानों के बीच मसीह के लिये एक सफल सेवकाई कर रहा है और सबको यहूदियों के लिये प्रार्थना करना भी सिखा रहा है।

गिनती २४:६ में बिलाम की भविष्यवाणी प्रगट करती है एक निर्णयात्मक बात को जो सारे मनुष्यों और राष्ट्रों के लिये है। इस्त्राएल को देख कर वह कहता है,

“जो कोई तुझे आर्शीवाद दे सो आशीष पाये और जो कोई तुझे शाप दे वह श्रापित हो (गिनती २४:६)। ह

र एक व्यक्ति और राष्ट्र इस बात से अनजान है कि उनका भविष्य उनके दृष्टिकोण जो यहूदियों के प्रति है उस पर टिकी है। जो उन्हें आशीष देगा वह आशीषित होगा और जो उन्हें श्राप देगा वह श्रापित होगा।

दूसरा, हमारे विरूद्ध शैतान का सबसे शक्तिशाली और अचूक हथियारों में से एक है ‘धन के लिए प्रेम’। यह सबसे पहले के दिनों से लेकर आज की मसीहियों में देखने को मिलता है। एक सेवकाई जिसमें आलौकिक चिन्ह और चमत्कार एवं ज्यादातर चंगाई को देखने को मिलता है, धीरे-धीरे वह धन बनाने के होड में लग जाते हैं।

पौलुस अपनी सेवकाई को दूसरे मसीही सेवकाईयों से तुलना करते हैं और कहते हैं, “उन बहुतों के समान नहीं जो परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं” (२ कुरिन्थियों २ः१७)। पौलुस के दिनों में भी कई मसीही अपने सेवकाई द्वारा धन बनाने में लगे थे।

धन अपने में बुरा नहीं है। एक धनी होने से कोई पापी नहीं होता। प्राकृतिक रूप से धन तक तटस्थ है। उसे अच्छे और बुरे दोनों कामों में उपयोग कर सकते हैं। परन्तु जब हम उससे प्रेम रखते है, वहां हम शैतान के चुंगुल में फंस जाते हैं। पौलुस सब प्रकार की बातों से हमें चेतावनी देते हैंः “पर जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं जो मनुष्यों को बिगाड़ देती है और विनाश के समुद्र में डूबा देती है। क्योंकि रूपये का लोभ सब प्रकार

“पर जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं जो मनुष्यों को बिगाड़ देती है और विनाश के समुद्र में डूबा देती है। क्योंकि रूपये का लोभ सब प्रकार की बुराईयों की जड़ है जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है”(१ तीमुथियुस ६:६-१०)।

मेरे स्वयं की सेवकाई में मैने परमेश्वर की योजनाओं को विश्वासियों के उन्नति के लिये सिखाया या वे लोग थे जो उसके राज्य के उद्देश्यों को करने के लिये समर्पित थे। फिर भी जब मैं मुड़ कर देखता हूं तो मैं यह अफसोस करता हूं कि मैंने यह प्रचार पौलुस की चेतावनी के बिना की, जो उसने १ तीमुथियुस में बताया है। मेरे विचारों की दृष्टि में मैं यह चित्र बनाता हूं कि जो विश्वासी धन से प्रेम रखते हैं वे एक तेज धार वाली, विषैली बरछी को अपने ही देह में घुसा देते हैं। यही बिलाम ने भी किया था।

तीसरा, हमें आत्मिक वरदान और आत्मिक फल के भेद को जानना है। वरदान योग्यता को दिखाता है और फल व्यक्तित्व को। जिस प्रकार हमने सीखा है कि वरदान एक लघु विभाजन से आता है परन्तु फल धीरे-धीरे निर्माण की प्रक्रिया से आता है।

किसी को आत्मिक वरदान मिलने से उनके व्यक्तित्व में बदलाव नहीं आता। अगर एक व्यक्ति जो आत्मिक वरदान पाने से पहले घमंडी या अविश्वसनीय या धोखेबाज था तो वह वरदान पाने के पश्चात भी घमंडी या अविश्वसनीय या धोखेबाज हो सकता है।

ऐसे एक वरदान के प्राप्त करने से जहां तक एक व्यक्ति का उत्तरदायित्व बढ़ जाता है क्योंकि इसके द्वारा उसका प्रभाव दूसरे के ऊपर होता है। यह अपने साथ एक प्रलोभन भी लेकर चलता है जो है ‘सफलता’। एक मसीही को अपने जीवन में ध्यान देना चाहिये कि वह एक धार्मिक व्यक्तित्व को कैसे बचायें रखे। यह शायद मुश्किल लगे कि, जितना ज्यादा एक व्यक्ति को वरदान प्राप्त होता है उतना ही ध्यान उसे फलों को प्राप्त करने में लगाना चाहिए। जब हम समय से पार होकर अनन्तता में जायेंगें तब हम अपने वरदान पीछे छोड़ देंगें और जो हमारे साथ रहेगा वह है हमारा ‘व्यक्तित्व’।

दूरदृष्टि प्राप्त थी और उनके जैसे धार्मिक बनने की प्रार्थना भी उसने की

“याकूब के धूलि के किनके को कौन गिन सकता है वा इस्त्राएल की चौथाई की गिनती कौन ले सकता है। सौभाग्य यदि मेरी मृत्यु धर्मियों की सी और मेरा अन्त भी उन्हीं के समान हो" (गिनती २३:१०)।

फिर भी बिलाम की प्रार्थना सुनी नहीं गई। वह परमेश्वर का न्याय मोआबो पर आने के साथ उसका भी अन्त हुआ। मोआबी वो थे जिनके धन के कारण परमेश्वर के विरूद्ध हो गया।

बिलाम के भविष्य का एक सांकेतिक उदाहरण यीशु के उपदेशों में पाते हैं जो उन्होंने मत्ती में लिखा (मत्ती ७:२१-२३) हैः

“जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य मे प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे; हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हमने तेरे नाम से भविष्यवाणी नहीं की और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे काम नहीं किए? तब मैं उनसे खुलकर कह दूंगा कि मैंने तुमको कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ”

साधारण तौर से बताया गया है कि परमेश्वर से आज्ञाकारी रहने के लिये कोई विकल्प नहीं। यही एक नियम है जो पर्याप्त है एक मसीही सैनिक के लिये ।

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